Last modified on 10 अगस्त 2018, at 09:08

"मन-मीत चले आओ (माहिया) /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

('Category:हाइकु <poem> 54 मन-मीत चले आओ दो पल बाकी हैं सीने से ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[Category:हाइकु]]
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
54
 
54
पंक्ति 18: पंक्ति 22:
 
बनकर खो जाओगे।
 
बनकर खो जाओगे।
 
5
 
5
कुछ समझा नहीं आता
+
कुछ समझ नहीं आता
 
कितने जन्मों का   
 
कितने जन्मों का   
 
मेरा तुमसे नाता ।
 
मेरा तुमसे नाता ।
पंक्ति 27: पंक्ति 31:
 
60
 
60
 
जिस लोक चला जाऊँ
 
जिस लोक चला जाऊँ
चाहती इतनी-सी-
+
चाहत इतनी-सी-
 
तुमको ही मैं पाऊँ।
 
तुमको ही मैं पाऊँ।
 
61
 
61
पंक्ति 42: पंक्ति 46:
 
धरती से मिल जाना।
 
धरती से मिल जाना।
 
64
 
64
अम्बर भी अकेला है
+
नभ आज अकेला है
 
प्यासी धरती से
 
प्यासी धरती से
 
मिलने की बेला है।
 
मिलने की बेला है।

09:08, 10 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

54
मन-मीत चले आओ
दो पल बाकी हैं
सीने से लग जाओ।
55
तन से तुम दूर रहे
पर सूने मन में
तुम ही भरपूर रहे ।
56
बस इतना जाने हैं-
इस जग में तुमको
हम अपना माने हैं।
57
जाने कब आओगे !
बाहों में खुशबू
बनकर खो जाओगे।
5
कुछ समझ नहीं आता
कितने जन्मों का
मेरा तुमसे नाता ।
59
जब अन्त इशारा हो
होंठों पर मेरे
बस नाम तुम्हारा हो।
60
जिस लोक चला जाऊँ
चाहत इतनी-सी-
तुमको ही मैं पाऊँ।
61
दीपक लाखों बाले
तेरे बिन मन से
रूठे प्यार उजाले
62
तुमको जब पाऊँगा-
पूजा क्या करना
मंदिर क्यों जाऊँगा।
63
चन्दा तुम खिल जाना
सूनी रातें हैं
धरती से मिल जाना।
64
नभ आज अकेला है
प्यासी धरती से
मिलने की बेला है।
65
जीवन में प्यास रही-
जो दिल में रहते
मिलने की आस रही।
66
बादल तुम ललचाते
आकर पास कभी
क्यों दूर चले जाते ।
67
धरती ये प्यास-भरी
बादल रूठ गए
मन की हर आस मरी।
68
तुमको पा जाऊँगी
कब तक रूठोगे
हर बार मनाऊँगी।
69
इस आँगन बरसोगे
प्यासा छोड़ मुझे
तुम भी तो तरसोगे।