अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो (मेघा छाए आधी रात / शर्मीली का नाम बदलकर देख सकते नहीं तुमको / इंदीवर कर दिया गया है) |
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+ | देख सकते नहीं ... | ||
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− | + | दुनियावाले खता माफ करते नहीं | |
− | + | दुनियावालों का ये ज़ुलम तो देखिए | |
− | + | देके भी जो सज़ा माफ करते नहीं | |
− | + | जिँदगी बन गई कैद इंसान की | |
− | + | कोई इलज़ाम लेकर किधर जाएगा | |
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08:49, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण
देख सकते नहीं तुमको जी भर के हम
दिल में किसके ग़ुमां क्या गुज़र जाएगा
तुमको अपना कहें तो कहें किस तरह
सारी महफ़िल का चेहरा उतर जाएगा
देख सकते नहीं ...
तुम भी बेताब हो हम भी बेचैन हैं
दिल में मिलने की हसरत मचलने लगी
सब्र का अब तो दामन सुलगने लगा
प्यार की आग सीने में जलने लगी
तुमको मिलने न पाए अगर आज हम
लगता है दिल ही ठहर जाएगा
देख सकते नहीं ...
हो किसी देश में या किसी भेष में
शक्लें अपनों की पहचान लेता है दिल
तुम कहो न कहो हम कहें ना कहें
बात दिल की तो खुद जान लेता है दिल
सामने बस युँही मुस्कराते रहो
ज़िन्दगी का मुक़द्दर सँवर जाएगा
देख सकते नहीं ...
जानकर की गई हो या अनजाने में
दुनियावाले खता माफ करते नहीं
दुनियावालों का ये ज़ुलम तो देखिए
देके भी जो सज़ा माफ करते नहीं
जिँदगी बन गई कैद इंसान की
कोई इलज़ाम लेकर किधर जाएगा
देख सकते नहीं ...