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"देर लगी आने में तुमको / इंदीवर" के अवतरणों में अंतर

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'''गीतकार : मज़रूह सुल्तानपुरी
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देर लगी आने में तुमको ...
  
रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,
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बेताब दिल था बेचैन आँखें
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खुद से खफ़ा हम रहने लगे थे
बन के सबा, बाग़े वफा में ...
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पागल हमें लोग कहने लगे थे
 
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अब इक पल भी बिछड़ें न हम तुम
मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे हम खिरामा ,
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वक़्त अगर रुक जाए तो
 
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देर लगी आने में तुमको ...
चाहत की खुशबू, यूँ ही ज़ुल्फ़ों से उड़ेगी, खिजां हो या बहारां
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यूँ ही झूमते, युहीँ झूमते और खिलते रहेंगे,
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बन के कली बन के सबा बाग़ें वफ़ा मेंरहें ना रहें हम ...
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खोये हम ऐसे क्या है मिलना क्या बिछड़ना नहीं है, याद हमको
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कूचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं है याद हमको,
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इसी सरज़मीं, इसी सरज़मीं पे हम तो रहेंगे,
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बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...रहें ना रहें हम ...
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जब हम न होंगे तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते ,
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अश्कों से भीगी चांदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते ,
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वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम तुमसे मिलेंगे,
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बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...
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रहें ना रहें हम, महका करेंगे ...
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08:54, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

देर लगी आने में तुमको
शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा
वैसे हम घबराए तो

तुम जो न आते हम तो मर जाते
क्या हम अकेले ज़िंदा रहते
तुमसे कहें क्या जो बीती दिल पे
दर्द-ए-जुदाई सहते सहते
आज हमारे प्यासे दिल पे
बनके बादल तुम छाए तो
देर लगी आने में तुमको ...

बेताब दिल था बेचैन आँखें
खुद से खफ़ा हम रहने लगे थे
हालत हमारी वो हो गई थी
पागल हमें लोग कहने लगे थे
अब इक पल भी बिछड़ें न हम तुम
वक़्त अगर रुक जाए तो
देर लगी आने में तुमको ...