भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उम्र तमाम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज | + | |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | < | + | }} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <Poem> | ||
+ | |||
+ | 23 | ||
डरी–डरी आँखों में | डरी–डरी आँखों में | ||
तिरते अनगिन आँसू | तिरते अनगिन आँसू | ||
इनको पोंछो | इनको पोंछो | ||
वरना जग जल जाएगा । | वरना जग जल जाएगा । | ||
− | + | 24 | |
उम्र तमाम | उम्र तमाम | ||
कर दी हमने | कर दी हमने | ||
रेतीले रिश्तों के नाम । | रेतीले रिश्तों के नाम । | ||
− | + | 25 | |
औरत की कथा | औरत की कथा | ||
हर आँगन में | हर आँगन में | ||
तुलसी चौरे–सी | तुलसी चौरे–सी | ||
सींची जाती रही व्यथा । | सींची जाती रही व्यथा । | ||
− | + | 26 | |
स्मृति तुम्हारी- | स्मृति तुम्हारी- | ||
हवा जैसे भोर की | हवा जैसे भोर की | ||
अनछुई , कुँआरी । | अनछुई , कुँआरी । | ||
− | + | 27 | |
माना कि | माना कि | ||
झुलस जाएँगे हम, | झुलस जाएँगे हम, | ||
फिर भी सूरज को | फिर भी सूरज को | ||
धरती पर लाएँगे हम । | धरती पर लाएँगे हम । | ||
− | + | 28 | |
पलकों पे लरजते मोती | पलकों पे लरजते मोती | ||
गिरने नहीं देना, | गिरने नहीं देना, | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 39: | ||
इससे बड़ा सुधा-पान नहीं होगा | इससे बड़ा सुधा-पान नहीं होगा | ||
इस जनम के वास्ते ! | इस जनम के वास्ते ! | ||
− | + | 29 | |
जिसने पाया,वह भरमाया | जिसने पाया,वह भरमाया | ||
जिसने खोया,वह तो रोया | जिसने खोया,वह तो रोया | ||
पाना-खोना,यही है जीवन | पाना-खोना,यही है जीवन | ||
आँसू से होता है तर्पण । | आँसू से होता है तर्पण । | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
08:23, 20 अगस्त 2022 के समय का अवतरण
23
डरी–डरी आँखों में
तिरते अनगिन आँसू
इनको पोंछो
वरना जग जल जाएगा ।
24
उम्र तमाम
कर दी हमने
रेतीले रिश्तों के नाम ।
25
औरत की कथा
हर आँगन में
तुलसी चौरे–सी
सींची जाती रही व्यथा ।
26
स्मृति तुम्हारी-
हवा जैसे भोर की
अनछुई , कुँआरी ।
27
माना कि
झुलस जाएँगे हम,
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम ।
28
पलकों पे लरजते मोती
गिरने नहीं देना,
धूल में मिलेंगे
किसके काम आएँगे !
लाओ मैं अँजुरी में भर लूँगा
आचमन कर लूँगा
इससे बड़ा सुधा-पान नहीं होगा
इस जनम के वास्ते !
29
जिसने पाया,वह भरमाया
जिसने खोया,वह तो रोया
पाना-खोना,यही है जीवन
आँसू से होता है तर्पण ।