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"नशे का अँधेरा भविष्य / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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कुछ टूटी हुई शीशियाँ कुछ बोतलों के ढक्कन
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गहन चीत्कार कर उठा मेरा मन
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दृष्टि में घूम गए लड़खड़ाते हुए किसी के कदम
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कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ कुछ टूटे हुए कंगन
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रक्ताश्रुओं से पूरित मुख
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आह निकली हृदय से थम गई धड़कन
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सब नशे में आया था घोल वह
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पैसा-परिश्रम-सम्मान और अब-
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कुछ टूटी हुई शीशियाँ कुछ बोतलों के ढक्कन
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कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ कुछ टूटे हुए कंगन
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हाय रे! प्रकृति तेरा यह छल
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मानव द्वारा इतना शोषण मानव का
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और कटुसत्य कँटीला और यह निर्मम जीवन
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स्वेद-छलकता झुका माथा
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अथक परिश्रम और विकराल पशु-प्रताड़न
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कपोलों की एक-एक झुर्री
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अस्थियों का जर्जर शरीर
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शिशुओं का एक बड़ा परिवार
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भूखा-नंगा, न बिस्तर न मा-बाप का प्यार
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कुछ कूड़े से चुने खिलौने कुछ टूटे हुए बर्तन
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कह रहे थे एक अनकही कहानी
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बोझ लोगों के जीवन का उठाते किशोरों के हाथ कोमल
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कुछ होटलों में अस्तित्व खोजते धोते हुए झूठन
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मिलों में-भट्टियों में नींद से पलकें बोझिल
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खानों में मुरझाता भविष्य झिलमिल
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कुछ कूड़ा बीनते कुछ बेचते अखबार प्रतिदिन
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क्या कहें इसे राष्ट्र का भावी गौरव
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या अंधकारमय भविष्य-
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कुछ टूटी हुई शीशियाँ कुछ बोतलों के ढक्कन
  
 
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00:18, 14 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण


पहाड़ी गाँव की पगडंडी और
नगर की गली में चलते हुए देखे मैंने-
कुछ टूटी हुई शीशियाँ कुछ बोतलों के ढक्कन

गहन चीत्कार कर उठा मेरा मन
दृष्टि में घूम गए लड़खड़ाते हुए किसी के कदम
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ कुछ टूटे हुए कंगन
रक्ताश्रुओं से पूरित मुख
परदों की झलमल में छिपे अविरल दुःख
आह निकली हृदय से थम गई धड़कन

सब नशे में आया था घोल वह
पैसा-परिश्रम-सम्मान और अब-
कुछ टूटी हुई शीशियाँ कुछ बोतलों के ढक्कन

मिल गया मिट्टी में परिश्रम
रह गए पास उसकी बीवी के अब-
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ कुछ टूटे हुए कंगन

हाय रे! प्रकृति तेरा यह छल
मानव द्वारा इतना शोषण मानव का
और कटुसत्य कँटीला और यह निर्मम जीवन
एक नारी की रोती गाथा
स्वेद-छलकता झुका माथा
अथक परिश्रम और विकराल पशु-प्रताड़न

कुछ चिल्लाहटें शिशु-सुलभ
भाग्य-कर्म की आँख-मिचौली
रोता-बिलखता हृदय छलकते हुए नयन

कपोलों की एक-एक झुर्री
अस्थियों का जर्जर शरीर
दिखावे की मुस्कान जलते हुए अधरों की जलन

शिशुओं का एक बड़ा परिवार
भूखा-नंगा, न बिस्तर न मा-बाप का प्यार
कुछ कूड़े से चुने खिलौने कुछ टूटे हुए बर्तन

कह रहे थे एक अनकही कहानी
बोझ लोगों के जीवन का उठाते किशोरों के हाथ कोमल
कुछ होटलों में अस्तित्व खोजते धोते हुए झूठन

मिलों में-भट्टियों में नींद से पलकें बोझिल
खानों में मुरझाता भविष्य झिलमिल
कुछ कूड़ा बीनते कुछ बेचते अखबार प्रतिदिन
क्या कहें इसे राष्ट्र का भावी गौरव
या अंधकारमय भविष्य-
कुछ टूटी हुई शीशियाँ कुछ बोतलों के ढक्कन