"उस पार / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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कभी स्नेह-कभी दुत्कार | कभी स्नेह-कभी दुत्कार | ||
दिवस के उस पार | दिवस के उस पार | ||
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+ | ब्रज अनुवाद: | ||
+ | बा पार/ रश्मि विभा त्रिपाठी | ||
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+ | दिवस के बा पार | ||
+ | जीवन कौ विस्तार | ||
+ | अथति संझा कौ रैनि सौं अभिसार | ||
+ | दिवस के बा पार | ||
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+ | सुरमई अँचरा बदरा कौ गहैं | ||
+ | अँजोरिया रूपसी की खनकति | ||
+ | चुरियनि की रेख की झाँई परति | ||
+ | दिवस के बा पार | ||
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+ | चमकत नरम अधरनि की मुसकनियाँ | ||
+ | सैंदुर की रेख गमकति मँगिया कौ चेटक | ||
+ | एकु नई पहचान, मेहँदी की अरंग | ||
+ | दिवस के बा पार | ||
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+ | काऊ सन चलिबे | ||
+ | काऊ कौ नाँउ लै टेरिबे | ||
+ | काऊ सन जीवन काटिबे की अभिलाख | ||
+ | दिवस के बा पार | ||
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+ | मखमल के गमकत बसननि की | ||
+ | झलमल चुनरिया में लागे सितारनि नाँई | ||
+ | गमकत साउन की पुरवाई नाँई | ||
+ | एकु सपुने कौं अपुनौ बनाइबे की जी आई | ||
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+ | दिवस के बा पार | ||
+ | जासौं कबहूँ कोऊ नातौ न हुतो | ||
+ | परसपर अनचीन्हे | ||
+ | ताहि अपनाइबे की रँगी भई चाह | ||
+ | दिवस के बा पार | ||
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+ | मुसकनियाँ पीर भरी | ||
+ | संवेदनहीन अरु अटक परी | ||
+ | नैननि कौ छन छन मेह | ||
+ | कबहूँ धिरयौ कबहूँ सनेह | ||
+ | दिवस के बा पार | ||
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08:11, 26 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
दिवस के उस पार
जीवन का विस्तार
ढलती सन्ध्या का निशा से मिलाप
दिवस के उस पार
सुरमई आँचल बादल का थामे
चाँदनी रूपसी की खनकती
चूड़ियों की रेखा का आभास
दिवस के उस पार
चमकते नर्म अधरों की मुस्कान
सिंदूर की रेखा महकती मांग का जादू
एक नई पहचान, मेहँदी की सुगन्ध
दिवस के उस पार
किसी के साथ चलने
किसी का नाम लेकर पुकारने
किसी के साथ जीवन गुजारने की ललक
दिवस के उस पार
मखमली महकते वस्त्रों की
झिलमिल चूनर में लगे सितारों सी
महकते सावन की हवाओं सी
एक सपने का अपना बनाने की चाहत
दिवस के उस पार
जिससे कभी कोई रिश्ता न था
एक दूसरे से अपरिचित
उसको अपनाने की रंगीन चाहत
दिवस के उस पार
मुस्कुराहटें पीड़ा भरी
निःसंवेदन और उलझन
नैनों की छन-छन बरसात
कभी स्नेह-कभी दुत्कार
दिवस के उस पार
-0
ब्रज अनुवाद:
बा पार/ रश्मि विभा त्रिपाठी
दिवस के बा पार
जीवन कौ विस्तार
अथति संझा कौ रैनि सौं अभिसार
दिवस के बा पार
सुरमई अँचरा बदरा कौ गहैं
अँजोरिया रूपसी की खनकति
चुरियनि की रेख की झाँई परति
दिवस के बा पार
चमकत नरम अधरनि की मुसकनियाँ
सैंदुर की रेख गमकति मँगिया कौ चेटक
एकु नई पहचान, मेहँदी की अरंग
दिवस के बा पार
काऊ सन चलिबे
काऊ कौ नाँउ लै टेरिबे
काऊ सन जीवन काटिबे की अभिलाख
दिवस के बा पार
मखमल के गमकत बसननि की
झलमल चुनरिया में लागे सितारनि नाँई
गमकत साउन की पुरवाई नाँई
एकु सपुने कौं अपुनौ बनाइबे की जी आई
दिवस के बा पार
जासौं कबहूँ कोऊ नातौ न हुतो
परसपर अनचीन्हे
ताहि अपनाइबे की रँगी भई चाह
दिवस के बा पार
मुसकनियाँ पीर भरी
संवेदनहीन अरु अटक परी
नैननि कौ छन छन मेह
कबहूँ धिरयौ कबहूँ सनेह
दिवस के बा पार
-0-