"दिल्ली में सुबह / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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18:53, 30 जून 2008 के समय का अवतरण
सीढि़यों से
गलियों में
उतरा ही था
कि हवा ने गलबहियां देते
कहा - इधर नहीं उधर
फिर कई मोड़ मुड़ता सड़क पर आया
तो बाएं बाजू ख्ड़ी प्रागैतिहासिक इमारत ने
अपना बड़ा सा मुंह खोल कहा - हलो
मैंने भी हाथ हिलाया और आगे बढ़ गया फुटपाथ पर-
दाएं सड़क पर गाडि़यां थीं इक्का - दुक्का
सुबह की सैर में शामिल सर्र- सर्र गुजरतीं
फ्लाईओवर के पास पहुंचा तो दिखा सूरज
लाल तलमलाता सा पुल चढ़ता
मैंने उससे पहले ही कह दिया - हलो...
आगे पुल के नीचे के सबसे हवादार इलाके में
सो रहे थे मजूर अपने कुनबे के साथ
उनके साथ थे कुत्ते
सिग्नलों के हिसाब से
दौड़-दौड़ सड़कें पार करते
वे भूंक रहे थे - आ जा दी
ट्रैफिक पार कर फुटपाथ पर पहुंचा
तो मिले एक वृद्ध
डंडे के सहारे निकले सैर पर
मैंने कहा हलो - उन्होंने जोड़ा
हां-हां चलो
हवाएं तो संग हैं ही ... अभी आता हूं
तभी दो कुत्ते दिखे ... पट्टेदार ... सैर पर निकले
उन्हें देखते ही आगे-आगे भागती हवा
दुबक गई मेरे पीछे
खैर कुत्तों ने सूंघ-सांघ कर छोड़ा हवा को
अब मैं भी लपका
लो आ गया पार्क
और जिम - खट खट खटाक
लौहदंड - डंबल भांजते युवक
ओह-कितनी भीड़ है इधर
हवाओं ने इशारा किया- चलो उधर
उस कोने वाली बेंच पर
उधर मैं भी भाग सकूंगी बे लगाम
मैंने कहा - अच्छा ...
अब लोग थे ढेरों आते-जाते
कामचोरी की चरबियां काटते
आपनी-अपनी तोंदों के
इनकिलाब से परेशान
आफिस जाकर आठ घंटे
ठस्स कुर्सियों में धंसे रहने की
क्षमता जुटाते
और किशोरियां थीं
अपने नवोदित वक्षों के कंपनों को
उत्सुक निगाहों से चुरातीं - टहलतीं
और बच्चे ढलान पर फिसलते बार-बार
और पांत में चादर पर विराजमान
स्त्री-पुरूष
योगा-स्वास प्रस्वास और वृथा हंसी का उद्योग करते
इस आमद-रफ्त से
सूरज थोड़ा परेशान हुआ
हवा कुछ गर्मायी और हांफने लगी
सबसे पहले महिलाएं गयीं बेडौल
फिर बूढ़े, फिर किशोरियां के पीछे
कुत्ता चराते लड़के गये
अब उठी वह युवती
पर उससे पहले उसके वक्ष उठे
और उनकी अग्रगामिता से परेशान
अपनी बाहों को आकाश में तान
उसने एक झटका दिया उन्हें
फिर चल निकली
उससे दूरी बनाता उठा युवक भी
हौले-हौले
सबसे अन्त में खेलते बच्चे चले
और हवा हो गये
अब उतर आयीं गिलहरियां
आशोक वृक्ष से नीचे
मैंनाएं भी उतरीं इधर-उधर से
पाइप से बहते पानी से ढीली हुई मिट्टी को
खोद-खोद
निकालने लगे काग-कौए
कीड़ों और चेरों को
अब चलने का वक्त चुका है
सोचा मैंने और उठा - सड़क पर भागा
वहां हरसिंगार और अमलतास की
ताजी कलियां बिखरी थीं
जिन्हें बुहारने को तत्पर सफाई कर्मी
अपने झाड़ओं को तौलता
अपनी कमर ऐंठ रहा था
इधर नीम पर बन आये थे
सफेद बेल-बूटे
और टिकोड़े आम के बेशुमार
फिर पीपल ने अपने हरेपन से
कचकचाकर हल्का शोर सा किया
हवा के साथ मिलकर
तभी
मोबाइल बजा-
किसी की सुबह हुई थी कहीं ...
हलो ... हां हां हां
आप तैयार हों
मैं पहुंच रहा हूं ...।