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किसान गीत / अवधेश्वर अरुण

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हम बिस्वास चाहइले,अरिआ पर नाचे किसनमा हो तू ग्यान देइत हत∙खेतबा झूमे धानहम तोहरा दिनमा में चमके दिबाकर के समझे ला चाहइले जोती अपनइती के परिधि रतिआ में बरसे अकसबा से मोतीतू दुरूह बने ला चाहइत हत∙भोरबा में साँबरा टेरे बंसी तान तर्क के जाल खेतबा में झूमे धानकल-कोल्हुअरबा में ऊँखबा पेराएमीठ-मीठ रसबा से मनमा जुराएहम कर्म चाहइले तू काम रोको प्रस्ताव बन ओठबा पर थिरके पिरीतिआ के गाँ बहला देइत हत∙खेतबा में झूमे धान हम बिस्वास के बदल बन खेत खरिहनमाँ में धनमा के दउनीबरसे ला चाहइले,गोरकी गुजरिआ खेले सुपली-मउनी तू उरा देबे ला चाहइत हत∙आश्वासन के आन्ही बन रह रह चलाबे नजरिआ के बान हमरा समझ खेतबा में न अबइअ झूमे धानतोहर विस्वास विरोधी रीतिकोठिआ भरल धान मनमा जुराएलतोहरा पता न हओ – अन-धन लछमी जी घरबा में आएल आस्था चालाकी से लमहर चीज होइअ,अँखिआ में छिटकल बिहान हो बिस्वास हिमालय से जादा ऊँचा होइअ, आ समझदारी आदमी के नकारे के छद्म न हए बल्कि स्वीकारे की पुन्य पर्व हएखेतबा में झूमे धान
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