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तुम्हारे किनारे शरद के हैं | तुम्हारे किनारे शरद के हैं | ||
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और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो | और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो | ||
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तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है | तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है | ||
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और हवाएँ | और हवाएँ | ||
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जो कई देशों को पार करती हुई | जो कई देशों को पार करती हुई | ||
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तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं | तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं | ||
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आसमान जैसी | आसमान जैसी | ||
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तुम्हें पार करने की इच्छा | तुम्हें पार करने की इच्छा | ||
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अक्सर नहीं होती | अक्सर नहीं होती | ||
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भटक जाने का डर बना रहता है ! | भटक जाने का डर बना रहता है ! | ||
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20:35, 13 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
समुद्र
तुम्हारे किनारे शरद के हैं
और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो
तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है
और हवाएँ
जो कई देशों को पार करती हुई
तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं
आसमान जैसी
तुम्हें पार करने की इच्छा
अक्सर नहीं होती
भटक जाने का डर बना रहता है !
था