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"माँ / भाग १ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
 
हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
 
 
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते  
 
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते  
 
  
 
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
 
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
 
 
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं  
 
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं  
 
  
 
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
 
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
 
 
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह  
 
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह  
 
  
 
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
 
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
 
 
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते  
 
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते  
 
  
 
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
 
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
 
 
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं  
 
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं  
 
  
 
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
 
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
 
 
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है  
 
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है  
 
  
 
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
 
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
 
 
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना  
 
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना  
 
  
 
भेजे  गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
 
भेजे  गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
 
 
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े  
 
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े  
 
  
 
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
 
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
 
 
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती  
 
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती  
 
  
 
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
 
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फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
 
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
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17:23, 14 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते

हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं

हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह

सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते

सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा