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जब-जब आशा के पौधोँ को
 
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सींचा मैँने बडे जतन से
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अधखिलती कलियों को काटा
 
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रँगहीन था रक्त बहा जो
 
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लेकिन क्या परवाह किसी को॥
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क्या होती परवाह किसी को॥
  
 
नई-पुरानी छोटी-छोटी
 
नई-पुरानी छोटी-छोटी
बूँदों से कुछ बादल जोडे,
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आशाओं के बादल जोडे,
 
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,
 
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,
झिलमिल रातें, सपने ओढ़े ,
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झिलमिल रातें, सपने तोड़े,
सोचा छू लूँ, पँख लगा कर,
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सोचा छू ले पँख लगा कर,
 
ऐसी आँधी चली अचानक
 
ऐसी आँधी चली अचानक
 
सावन बरसा पर तरसा कर
 
सावन बरसा पर तरसा कर

09:28, 26 अगस्त 2019 के समय का अवतरण

जीवन बस अपना होता है,
अपने ही सँग जीना सीखो॥

जब-जब आशा के पौधोँ को
सींचा जिस ने बडे जतन से
फूल खिलेँगे, मोती देँगे,
सपना बोया बहुत लगन से,
माली ने निष्ठुरता से यूँ
अधखिलती कलियों को काटा
रँगहीन था रक्त बहा जो
क्या होती परवाह किसी को॥

नई-पुरानी छोटी-छोटी
आशाओं के बादल जोडे,
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,
झिलमिल रातें, सपने तोड़े,
सोचा छू ले पँख लगा कर,
ऐसी आँधी चली अचानक
सावन बरसा पर तरसा कर
फिर से प्यासा रखा नदी को॥

हम हैं जो बुनते अनदेखे
सब आशंकाओं के जाले,
हम ही होते शत्रु स्वयं के
अपने से ही चलते चालें,
तेज़ धार में समझबूझ कर
दे देते पतवार नाव की,
गहरे जल के हिचकोलों में
दोषी ठहराते माझी को॥

जीवन बस अपना होता है,
अपने ही सँग जीना सीखो॥