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तुम हमारे द्वार पर / अंकित काव्यांश
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17:55, 2 अगस्त 2020
कहीं ऐसा तो
नही
नहीं
पहले अँधेरा भेजते हो,
फिर सितारों की दलाली कर उजाला बेचते हो।
कैदखाने
क़ैद-ख़ाने
में
पड़ा सूरज रिहाई माँगता हो,
या सकल आकाश आँगन में तुम्हारे नाचता हो।
Abhishek Amber
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