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"कभी पिला दो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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कोई भी ढूँढ न पाए।
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दूर तक सन्नाटा
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किसने दुख बाँटा ।
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खिला आँगन
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तुम्हीं तो  सामने थे
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कभी पिला दो
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अधर सोमरस
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मुझे जिलादो,
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आलिंगन कसके
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सूने उर बसना।
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घना अँधेरा
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घिरा है चारों ओर
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तेरी मुस्कान
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मेरा नूतन भोर
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तुम्हीं हो और -छोर।
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कर दूँ तुम्हें
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मैं सुख समर्पित
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अपने दुःख
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मुझे सब दे देना
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वही आनन्द मेरा।
  
 
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10:25, 20 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

7
बाहों में तुम
लिपटी लता- जैसे
होंठों से पीते
मादक अधरों को
थम गया समय।
8
बन्धन कसे
प्राण भी अकुलाए
नदी सिन्धु में
मिले और खो जाए
कोई भी ढूँढ न पाए।
9
साथी है कौन
अम्बर भी है मौन
एकाकी पथ
दूर तक सन्नाटा
किसने दुख बाँटा ।
10
भोर के माथे
जड़ दिया चुम्बन
खिला आँगन
आँख भरके देखा-
तुम्हीं तो सामने थे
11
कभी पिला दो
अधर सोमरस
मुझे जिलादो,
आलिंगन कसके
सूने उर बसना।
12
घना अँधेरा
घिरा है चारों ओर
तेरी मुस्कान
मेरा नूतन भोर
तुम्हीं हो और -छोर।
13
कर दूँ तुम्हें
मैं सुख समर्पित
अपने दुःख
मुझे सब दे देना
वही आनन्द मेरा।