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"गीत / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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+ | '''(रचनाकाल :दिल्ली,1997) |
19:34, 5 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने
दूर हो तुझ से बीतेंगे साल कितने
काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं
फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है
भर छाती धँसकर जीता हूँ जीवन
कभी ये नियति देती उछाल भी हैं
जाने...
फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं
लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है
खट-खट कर कैसे राह बनाता हूँ थोड़ी
जानता हूँ आगे बैठा भूचाल भी है
जाने...
(रचनाकाल :दिल्ली,1997)