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"घड़ियाँ बन्द क्यों हैं / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर

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वह खोयी हुई मुस्कानों का शहर था
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घड़ियाँ कलाईयों पर नहीं हैं अब
वहाँ कोई मुस्कराता नहीं था
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वे मुट्ठियों में हैं या जेबों में
न सब्जीवाला न पनवाड़ी
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पर समय गिरेबान पर चढ़ गया है
न राशन न परचून की दुकानवाला
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और रेत रहा है
  
मुस्कान कब खोयी
+
समय की फिक्र से बच गयी हैं भुजायें
पता नहीं
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और हथेलियों या जेबों में बची हैं सिर्फ़ बन्द घड़ियाँ ही
कब थी
+
समय के फिसलने के बाद
पता नहीं
+
आखिरी बार कब दिखी
+
पता नहीं
+
  
कविता है तो क्या
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घड़ियों ने समय को व्यक्त करने से मना कर दिया है  
गलतबयानी की यहाँ हरगिज जगह नहीं  
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वे उससे बँध कर नहीं रहना चाहतीं
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और न ही उसे बाँध कर रखना चाहती हैं काँच के किसी घेरे में
  
मुस्कान तो थी जनाब
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दीवार अब समय देखे जाने की माकूल जगह नहीं रही
यहाँ ठीक नीचे एक शहर था
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और घड़ियाँ अब वहाँ टाँगे जाने से बगावत कर बैठी हैं
जहाँ लोग मुस्काते थे
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और मुस्कानों के मलवे में ही दबे थे
+
  
जब एक पुरातत्वशास्त्री
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नगर में टावर पुरातत्व के अवशेष भर हैं
शहर के बाहर के टीलों में निकाल आया था
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और बन्द पड़ी हैं घड़ियाँ।</poem>
किसी मुस्कानों के नगर का भग्नावशेष
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कविता है तो क्या
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पुरानी बातों से सिर्फ़ मुस्कान की तसदीक नहीं होती
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अभी तो मुस्काया था
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काँच की दीवारों के पीछे कोई सेल्समैन
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जब तुम गुजर रहे थे
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उसकी दुकान के आगे
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पर तुमने मुस्कान दबायी थी
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पता नहीं उसे वह तुम्हारी कोई कमजोरी समझ ले
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और बेच डाले कोई बीमा या बरतन
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या कपड़े या कुरसी
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तो जनाब
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मुस्कराना पीड़ित या पीड़क होने का सिम्बल था यहाँ
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और इसलिये लोग जो काँच की किसी दीवार के पीछे नहीं थे
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किसी विवशतावश
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वे मुस्कराहट छुपा जाते थे
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और वह शहर खोयी हुई मुस्कानों का शहर था
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कि मुस्कान सिर्फ़ बिकती थी
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और जो खरीदना नहीं चाहता था
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वह मन से मलिन होता था
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खोयी हुई मुस्कानों के शहर में  
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एक बात और अलग थी
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कोई था जो ठठा कर हँसता था
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शायद वह कोई और था
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और वह किसी काँच की दीवार के पीछे
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अपनी मुस्कान और पेट लिये नहीं खड़ा था
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वह मुस्कानों की कालाबाजारी का कोई व्यापारी था
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उसकी अपनी ऊँची दीवारें थी
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वही मुस्कराता था
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वही ठठा कर हँसता था
+
 
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हम बस नीचे दबे हुए
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खोयी हुई मुस्कानों के शहर के
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बाहर निकलने की उम्मीद कर सकते थे बस।
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11:20, 15 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

घड़ियाँ कलाईयों पर नहीं हैं अब
वे मुट्ठियों में हैं या जेबों में
पर समय गिरेबान पर चढ़ गया है
और रेत रहा है

समय की फिक्र से बच गयी हैं भुजायें
और हथेलियों या जेबों में बची हैं सिर्फ़ बन्द घड़ियाँ ही
समय के फिसलने के बाद

घड़ियों ने समय को व्यक्त करने से मना कर दिया है
वे उससे बँध कर नहीं रहना चाहतीं
और न ही उसे बाँध कर रखना चाहती हैं काँच के किसी घेरे में

दीवार अब समय देखे जाने की माकूल जगह नहीं रही
और घड़ियाँ अब वहाँ टाँगे जाने से बगावत कर बैठी हैं

नगर में टावर पुरातत्व के अवशेष भर हैं
और बन्द पड़ी हैं घड़ियाँ।