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"घाव तुम्हारे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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'''घाव तुम्हारे | '''घाव तुम्हारे | ||
रिसे हैं निरंतर | रिसे हैं निरंतर | ||
मेरे भीतर।''' | मेरे भीतर।''' | ||
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प्यास बुझाई | प्यास बुझाई | ||
जीभरके पिए थे | जीभरके पिए थे | ||
तेरे जो आँसू। | तेरे जो आँसू। | ||
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सीने लगाऊँ | सीने लगाऊँ | ||
हर अश्क तुम्हारा | हर अश्क तुम्हारा | ||
मुझको सींचे। | मुझको सींचे। | ||
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सौ-सौ पहरे | सौ-सौ पहरे | ||
फिर -फिर खुलते | फिर -फिर खुलते | ||
घाव गहरे। | घाव गहरे। | ||
− | + | 65 | |
युगों से ओढ़ी | युगों से ओढ़ी | ||
दुःख -भरी चादर | दुःख -भरी चादर | ||
कैसे उतारूँ? | कैसे उतारूँ? | ||
− | + | 66 | |
कुछ न जानूँ | कुछ न जानूँ | ||
धर्म -कर्म क्या होता | धर्म -कर्म क्या होता | ||
तुझको मानूँ | तुझको मानूँ | ||
− | + | 67 | |
जग ये छोड़े | जग ये छोड़े | ||
तुम प्राणों में रहो | तुम प्राणों में रहो | ||
इतना चाहूँ। | इतना चाहूँ। | ||
+ | 68 | ||
+ | भोर मुस्काई | ||
+ | मुकुलित कमल | ||
+ | नैन तुम्हारे | ||
+ | 69 | ||
+ | जन्मों की माया | ||
+ | कैसे है बाँधे जीव | ||
+ | मन व्याकुल। | ||
+ | 70 | ||
+ | नेह से भरे | ||
+ | गंगा नहाके आए | ||
+ | मृदु वचन। | ||
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11:05, 11 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण
61
घाव तुम्हारे
रिसे हैं निरंतर
मेरे भीतर।
62
प्यास बुझाई
जीभरके पिए थे
तेरे जो आँसू।
63
सीने लगाऊँ
हर अश्क तुम्हारा
मुझको सींचे।
64
सौ-सौ पहरे
फिर -फिर खुलते
घाव गहरे।
65
युगों से ओढ़ी
दुःख -भरी चादर
कैसे उतारूँ?
66
कुछ न जानूँ
धर्म -कर्म क्या होता
तुझको मानूँ
67
जग ये छोड़े
तुम प्राणों में रहो
इतना चाहूँ।
68
भोर मुस्काई
मुकुलित कमल
नैन तुम्हारे
69
जन्मों की माया
कैसे है बाँधे जीव
मन व्याकुल।
70
नेह से भरे
गंगा नहाके आए
मृदु वचन।