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"तुम्हारे साथ चलने का न सुख पाता तो क्या गाता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | तुम्हारा ग़म जो मेरा ग़म न बन जाता तो क्या गाता | ||
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+ | ज़मीं पर नूर वो अपना न बिखराता तो क्या गाता | ||
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+ | क़लम की भी वही स्याही न बन जाता तो क्या गाता | ||
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+ | न तो सागर खनकते औ न जश्ने- मैकशी होता | ||
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+ | तुम्हारा रूप जो लोगों को दीवाना बना देता | ||
+ | ग़ज़ल का व्याकरण मेरी न बन जाता क्या गाता | ||
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+ | तू मेरे दिल में है फिर भी तुझे ही ढूँढता फिरता | ||
+ | हक़ीक़त क्या है गर मैं यह समझ जाता तो क्या गाता | ||
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00:29, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
तुम्हारे साथ चलने का न सुख पाता तो क्या गाता
तुम्हारा ग़म जो मेरा ग़म न बन जाता तो क्या गाता
वो देखो चॉद कितनी दूर है आकाश में फिर भी
ज़मीं पर नूर वो अपना न बिखराता तो क्या गाता
समन्दर से निकल करके जो आँसू आँख में छलका
क़लम की भी वही स्याही न बन जाता तो क्या गाता
न तो सागर खनकते औ न जश्ने- मैकशी होता
अगर साक़ी न आकर जाम छलकाता तो क्या गाता
तुम्हारा रूप जो लोगों को दीवाना बना देता
ग़ज़ल का व्याकरण मेरी न बन जाता क्या गाता
किसी की मौत हो तो दूसरा बेमौत मर जाये
हमारा यूँ अगर होता नहीं नाता तो क्या गाता
तू मेरे दिल में है फिर भी तुझे ही ढूँढता फिरता
हक़ीक़त क्या है गर मैं यह समझ जाता तो क्या गाता