भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रुक गई बहती नदी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(Created blank page)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
 +
|संग्रह=नीम तले / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
 +
}}
 +
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 +
काम सारे ख़त्म करके
 +
रुक गई बहती नदी
 +
ओढ़ कर
 +
कुहरे की चादर
 +
देर तक सोती रही
  
 +
सूर्य बाबा
 +
उठ सवेरे
 +
हाथ-मुँह धो आ गये
 +
जो दिखा उनको
 +
उसी से
 +
चाय माँगे जा रहे
 +
 +
धूप कमरे में घुसी तो
 +
हड़बड़ाकर उठ गई
 +
 +
गर्म होते सूर्य बाबा ने
 +
कहा कुछ धूप से
 +
धूप तो सब जानती थी
 +
गुदगुदा आई उसे
 +
 +
उठ गई
 +
झटपट नहाकर
 +
वो रसोई में घुसी
 +
 +
चाय पीकर
 +
सूर्य बाबा ने कहा
 +
जीती रहो
 +
खाईयाँ
 +
दो पीढ़ियों के बीच की
 +
सीती रहो
 +
 +
मुस्कुरा चंचल नदी
 +
सबको जगाने चल पड़ी
 +
</poem>

10:05, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

काम सारे ख़त्म करके
रुक गई बहती नदी
ओढ़ कर
कुहरे की चादर
देर तक सोती रही

सूर्य बाबा
उठ सवेरे
हाथ-मुँह धो आ गये
जो दिखा उनको
उसी से
चाय माँगे जा रहे

धूप कमरे में घुसी तो
हड़बड़ाकर उठ गई
 
गर्म होते सूर्य बाबा ने
कहा कुछ धूप से
धूप तो सब जानती थी
गुदगुदा आई उसे

उठ गई
झटपट नहाकर
वो रसोई में घुसी

चाय पीकर
सूर्य बाबा ने कहा
जीती रहो
खाईयाँ
दो पीढ़ियों के बीच की
सीती रहो

मुस्कुरा चंचल नदी
सबको जगाने चल पड़ी