Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 14:47

"अरूणाकाश / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय }} जीवन के तमाम रंग<br> खिलते हैं अरूणाकाश<br> में...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अरुणा राय
 
|रचनाकार=अरुणा राय
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
जीवन के तमाम रंग<br>
+
<poem>
खिलते हैं अरूणाकाश<br>
+
जीवन के तमाम रंग  
में<br>
+
खिलते हैं अरूणाकाश  
तितलियां उड़ती हैं<br>
+
में  
पक्षी अपनी चहचहाहटों<br>
+
तितलियाँ उड़ती हैं  
से<br>
+
पक्षी अपनी चहचहाटों
गूंजाते हैं अरूणाकाश<br>
+
से  
तड़कर गिरने से पहले<br>
+
गुँजाते हैं अरूणाकाश  
बिजलियां कौंधती हैं<br>
+
तड़कर गिरने से पहले  
अरूणाकाश में<br>
+
बिजलियां कौंधती हैं  
वहां संचित रहते हैं<br>
+
अरूणाकाश में  
सारे राग विराग<br>
+
वहाँ संचित रहते हैं  
दुखी आदमी ताकता है उपर<br>
+
सारे राग-विराग  
अरूणाकाश<br>
+
दुखी आदमी ताकता है ऊपर
ठहाके उसे ही गुंजाते<br>
+
अरूणाकाश  
हैं<br>
+
ठहाके उसे ही गुँजाते
आंसुओं के साथ मिट्टी<br>
+
हैं  
में गिरता<br>
+
आँसुओं के साथ मिट्टी  
जब भारी हो जाता है दुख<br>
+
में गिरता  
तब उपर उठती आह<br>
+
जब भारी हो जाता है दुख  
समेट लेता है<br>
+
तब ऊपर उठती आह  
 +
समेट लेता है जिसे
 
अरूणाकाश।
 
अरूणाकाश।
 +
</poem>

14:47, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जीवन के तमाम रंग
खिलते हैं अरूणाकाश
में
तितलियाँ उड़ती हैं
पक्षी अपनी चहचहाटों
से
गुँजाते हैं अरूणाकाश
तड़कर गिरने से पहले
बिजलियां कौंधती हैं
अरूणाकाश में
वहाँ संचित रहते हैं
सारे राग-विराग
दुखी आदमी ताकता है ऊपर
अरूणाकाश
ठहाके उसे ही गुँजाते
हैं
आँसुओं के साथ मिट्टी
में गिरता
जब भारी हो जाता है दुख
तब ऊपर उठती आह
समेट लेता है जिसे
अरूणाकाश।