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गरल घोलते रह गये / ओम नीरव
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06:04, 20 जून 2020
अर्थ-स्वामी खड़े मोलते रह गये।
अश्रु उनके न
पोछे
पोंछे
किसी ने कभी,
व्यर्थ ही लोग जय बोलते रह गये।
पृष्ठ के पृष्ठ हम खोलते रह गये।
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आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
</poem>
Abhishek Amber
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