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"मन के भोर / रामकृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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टह-टह जे इंजोरिआ हल
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तोर चुप्पी अनोर हो गेलो
कन्ने ऊ पराएल हे,
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रात करिआ से गोर हो गेलो
सपना के सजल बसती
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का हूँ, मन के भरम पाल-पोस के अप्पन
काहे तो नुकाएल हे॥
+
एगो लत्तर इयाद के सरेख कइली हल।
असरा के समुन्नर में
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साज के, सुरके न, कनहूँ से राग के असरा,
जिनगी के लहर उमगे।
+
तोरे आँगछ से अन्हरिओ इंजोर हो गेलो॥
कुछ फूल खिले मनके
+
ओठ से बात जब छलक जैतो तब कहिह,
कुछ घाम उगे, लहके॥
+
गीत हिरदा में जब धमक जैतो फूल निअन
आखर जे कढ़ल अनकल
+
गन्ह के छाँह से सिरजल सिनेह के छँहरी
कनिआँ सन लजाएल हे॥
+
जेठ के लूक-पहर जुड़-झकोर हो गेलो॥
बादर के करेजा में
+
गुदगुदी मन के भरम खोल सबके कह देतो,
अनके, मलका मलके,
+
तोर मातल मुठान से अइसन लग रहलो।
जे गीत बुनल महके
+
अब, बहाना बना के मत जिआन बेर करऽ।
मनफेर अरथ खनके॥
+
तोर अँचरा में हमर मन के भोर हो गेलो॥
अब लालो परसबन्ना
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काहे तो सेराएल हे॥
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फिनसे अमरइआ के
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छाती में दरद उगलो,
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पीअर फूलल सरसो-
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देहे, हरदी लगलो॥
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अलता में, मेंहदी में
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ऊ साँसो समाएल हे॥
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12:41, 3 मार्च 2019 के समय का अवतरण

तोर चुप्पी अनोर हो गेलो
रात करिआ से गोर हो गेलो
का हूँ, मन के भरम पाल-पोस के अप्पन
एगो लत्तर इयाद के सरेख कइली हल।
साज के, सुरके न, कनहूँ से राग के असरा,
तोरे आँगछ से अन्हरिओ इंजोर हो गेलो॥
ओठ से बात जब छलक जैतो तब कहिह,
गीत हिरदा में जब धमक जैतो फूल निअन
गन्ह के छाँह से सिरजल सिनेह के छँहरी
जेठ के लूक-पहर जुड़-झकोर हो गेलो॥
गुदगुदी मन के भरम खोल सबके कह देतो,
तोर मातल मुठान से अइसन लग रहलो।
अब, बहाना बना के मत जिआन बेर करऽ।
तोर अँचरा में हमर मन के भोर हो गेलो॥