भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लौटना नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 49: | पंक्ति 49: | ||
107 | 107 | ||
बिछे अंगार | बिछे अंगार | ||
− | चला हूँ नंगे | + | चला हूँ नंगे पाँव |
कोई न ठौर । | कोई न ठौर । | ||
− | + | 108 | |
+ | मरण पीड़ा | ||
+ | प्रतिपल सहते | ||
+ | होंठ कसैले। | ||
+ | 109 | ||
+ | दुख सहेंगे | ||
+ | उफ नहीं कहेंगे | ||
+ | चिन्ता तुम्हारी। | ||
+ | 110 | ||
+ | जितना जिया | ||
+ | कालकूट पीकर | ||
+ | अमर हुए। | ||
<poem> | <poem> |
02:33, 26 मार्च 2019 के समय का अवतरण
97
घृणा के बीज
बीजते दिन-रात
प्रेम न उगे।
98
लंका समझ
जलाया था जो घर
मेरा था वह ।
99
वाद-विवाद
अधमरे संवाद
जीवन-चर्या ।
100
पूजा निष्काम
कलह दिन-रात
नहीं विराम ।
101
शास्त्रों का सार
जग के सारे पाश
हमने रचे ।
102
नेकी न कर
लोग मार डालेंगे
ख़ुदा से डर ।
103
उजड़ा घर
सर्प -जैसी फुत्कार
काँपी दीवार ।
104
चुभी आँखों में
कल्याण- कामनाएँ
अंधड़ हेरे ।
105
लौटना नहीं
बेघर -बेसहारा
खुला अम्बर ।
106
रिश्तों का तौंक
दिन -रात टीसता
गले में फँसा।
107
बिछे अंगार
चला हूँ नंगे पाँव
कोई न ठौर ।
108
मरण पीड़ा
प्रतिपल सहते
होंठ कसैले।
109
दुख सहेंगे
उफ नहीं कहेंगे
चिन्ता तुम्हारी।
110
जितना जिया
कालकूट पीकर
अमर हुए।