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"मेरे मन -आँगन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | कितनी होगी मन में | ||
+ | व्याकुलता जान लो | ||
+ | दर्द हमारे एक हैं | ||
+ | खोलो मन की आँखें | ||
+ | खुद ही पहचान लो। | ||
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22:01, 31 मार्च 2019 के समय का अवतरण
मूक अब क्यों प्राण मेरे
कैसे कोई जानेगा?
एक निमिष का रहा अबोला
था प्राणों पर भारी।
स्वर सुने गुज़रा है अरसा
तब से अब तक
कितनी है लाचारी ,
मेरे मन -आँगन
केवल विष बरसा
भरी व्यथा
कितनी होगी मन में
व्याकुलता जान लो
दर्द हमारे एक हैं
खोलो मन की आँखें
खुद ही पहचान लो।