"एक ख़ास मौसम / विनोद विक्रम केसी" के अवतरणों में अंतर
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03:29, 18 मई 2019 के समय का अवतरण
उसने कहा — भाईसाब !
आप तो हीरो दिखते हैं ।
उधर मेरे पड़ोस के बच्चे
मुझे भूत कहते हैं ।
उसने कहा — भाईसाब !
आपकी आँखे बहुत सुन्दर हैं ।
मेरे पड़ोस के बच्चों को
वे लगती हैं टमाटर की तरह ।
उसने कहा — भाईसाब !
आपकी नाक को बारीकी से तराशा है कुदरत ने ।
मगर मेरे पड़ोस के बच्चे मेरे मुँह पर कहते हैं —
ऐसी नुकीली नाक
किस चोरबाज़ार मे मिलती है, अँकल ?
आपको बता दूँ
मेरे पड़ोस के बच्चे बहुत अच्छे हैं
मेरा मज़ाक उड़ाते हैं
पर मुझे प्यार करते हैं ।
ये बच्चे नहीं होते तो
मै भूल ही जाता कि एक ख़ास मौसम में
मै उनको अच्छा लगता हूँ, बहुत अच्छा ।
वह
जो राजनीति सीख रही अपनी सन्तति को सिखाता है —
इलेक्शन के मौसम मे
हर कुत्ते को हिरन कहा करो
फिर लोकतन्त्र की गली भी तुम्हारी
लोकतन्त्र का जँगल भी तुम्हारा ।
(रचनाकाल : 2017,जब नेपाल में स्थानीय सरकार का निर्वाचन हो रहा था ।)