भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाँद निचोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:हाइकु]]
 
[[Category:हाइकु]]
 
<poem>
 
<poem>
 
+
98
 
+
शब्दों की ओट
 
+
ये शब्द -सौदागर
 +
देते हैं चोट ।
 +
99
 +
भटक रहा
 +
दर-दर ईश्वर
 +
न भक्त मिला ।
 +
100
 +
अस्थि-पंजर
 +
है भूख से व्याकुल
 +
प्रभु के घर।
 +
101
 +
भेड़ें जनता
 +
भेड़िए पग-पग
 +
ताक लगाए ।
 +
102
 +
दया व नारी
 +
जीवन के जुए में
 +
दोनों ही हारी ।
 +
104
 +
शिशु -सी धूप
 +
उतर रही घाटी में
 +
मोहक रूप ।
 +
105
 +
बजा माँदल
 +
घाटियों मे उतरे
 +
मेघ चंचल ।
 +
106
 +
चढ़ी उचक
 +
ऊँची मुँडेर पर
 +
साँझ की धूप ।
 +
107
 +
हो गई साँझ
 +
धूप -वधू लजाई
 +
ओट हो गई ।
 +
108
 +
ईर्ष्या की आग
 +
जला देती जिसको
 +
होता वो राख ।
 +
109
 +
दो घूँट प्यार
 +
किसी का है जीवन
 +
दे दें जो आप ।
 +
11 0
 +
तुम्हारा कल
 +
भला मैं क्यों पूछता
 +
आज हो मेरे ।
 +
111
 +
छू लूँगा माथा
 +
मिटेंगे सब ताप
 +
मेरे हैं आप ।
 +
112
 +
आँसू झरेंगे
 +
व्याकुल मन को ये
 +
दुखी करेंगे ।
 +
113
 +
कब क्या देना
 +
ईश्वर इसे जाने
 +
हम न मानें ।
 +
114
 +
दो पल मिले
 +
मधुर प्यार के जो
 +
स्वर्ग से बड़े ।
 +
115
 +
आई जब थी
 +
जीवन -सांध्य -बेला
 +
तुम थे मिले ।
 +
116
 +
मुझे तो भाया
 +
सादगी में नहाया
 +
रूप तुम्हारा ।
 +
117
 +
चाँद निचोड़ा
 +
और दे दिया वह
 +
रूप तुमको ।
 +
118
 +
उनसे गिला
 +
जिनसे धोखा कभी
 +
तुमको मिला ।
  
 
</poem>
 
</poem>

04:49, 19 मई 2019 के समय का अवतरण

 98
शब्दों की ओट
ये शब्द -सौदागर
देते हैं चोट ।
 99
 भटक रहा
दर-दर ईश्वर
न भक्त मिला ।
 100
अस्थि-पंजर
है भूख से व्याकुल
प्रभु के घर।
 101
भेड़ें जनता
भेड़िए पग-पग
ताक लगाए ।
 102
दया व नारी
जीवन के जुए में
दोनों ही हारी ।
104
शिशु -सी धूप
उतर रही घाटी में
मोहक रूप ।
105
बजा माँदल
घाटियों मे उतरे
मेघ चंचल ।
106
चढ़ी उचक
ऊँची मुँडेर पर
साँझ की धूप ।
107
हो गई साँझ
धूप -वधू लजाई
ओट हो गई ।
108
ईर्ष्या की आग
जला देती जिसको
होता वो राख ।
109
दो घूँट प्यार
किसी का है जीवन
दे दें जो आप ।
 11 0
तुम्हारा कल
भला मैं क्यों पूछता
आज हो मेरे ।
 111
छू लूँगा माथा
मिटेंगे सब ताप
मेरे हैं आप ।
 112
आँसू झरेंगे
व्याकुल मन को ये
दुखी करेंगे ।
 113
कब क्या देना
ईश्वर इसे जाने
हम न मानें ।
 114
दो पल मिले
मधुर प्यार के जो
स्वर्ग से बड़े ।
 115
आई जब थी
जीवन -सांध्य -बेला
तुम थे मिले ।
 116
मुझे तो भाया
सादगी में नहाया
रूप तुम्हारा ।
 117
चाँद निचोड़ा
और दे दिया वह
रूप तुमको ।
 118
उनसे गिला
जिनसे धोखा कभी
तुमको मिला ।