"चाँद निचोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | न भक्त मिला । | ||
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+ | है भूख से व्याकुल | ||
+ | प्रभु के घर। | ||
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+ | भेड़ें जनता | ||
+ | भेड़िए पग-पग | ||
+ | ताक लगाए । | ||
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+ | दया व नारी | ||
+ | जीवन के जुए में | ||
+ | दोनों ही हारी । | ||
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+ | शिशु -सी धूप | ||
+ | उतर रही घाटी में | ||
+ | मोहक रूप । | ||
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+ | बजा माँदल | ||
+ | घाटियों मे उतरे | ||
+ | मेघ चंचल । | ||
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+ | चढ़ी उचक | ||
+ | ऊँची मुँडेर पर | ||
+ | साँझ की धूप । | ||
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+ | हो गई साँझ | ||
+ | धूप -वधू लजाई | ||
+ | ओट हो गई । | ||
+ | 108 | ||
+ | ईर्ष्या की आग | ||
+ | जला देती जिसको | ||
+ | होता वो राख । | ||
+ | 109 | ||
+ | दो घूँट प्यार | ||
+ | किसी का है जीवन | ||
+ | दे दें जो आप । | ||
+ | 11 0 | ||
+ | तुम्हारा कल | ||
+ | भला मैं क्यों पूछता | ||
+ | आज हो मेरे । | ||
+ | 111 | ||
+ | छू लूँगा माथा | ||
+ | मिटेंगे सब ताप | ||
+ | मेरे हैं आप । | ||
+ | 112 | ||
+ | आँसू झरेंगे | ||
+ | व्याकुल मन को ये | ||
+ | दुखी करेंगे । | ||
+ | 113 | ||
+ | कब क्या देना | ||
+ | ईश्वर इसे जाने | ||
+ | हम न मानें । | ||
+ | 114 | ||
+ | दो पल मिले | ||
+ | मधुर प्यार के जो | ||
+ | स्वर्ग से बड़े । | ||
+ | 115 | ||
+ | आई जब थी | ||
+ | जीवन -सांध्य -बेला | ||
+ | तुम थे मिले । | ||
+ | 116 | ||
+ | मुझे तो भाया | ||
+ | सादगी में नहाया | ||
+ | रूप तुम्हारा । | ||
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+ | चाँद निचोड़ा | ||
+ | और दे दिया वह | ||
+ | रूप तुमको । | ||
+ | 118 | ||
+ | उनसे गिला | ||
+ | जिनसे धोखा कभी | ||
+ | तुमको मिला । | ||
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04:49, 19 मई 2019 के समय का अवतरण
98
शब्दों की ओट
ये शब्द -सौदागर
देते हैं चोट ।
99
भटक रहा
दर-दर ईश्वर
न भक्त मिला ।
100
अस्थि-पंजर
है भूख से व्याकुल
प्रभु के घर।
101
भेड़ें जनता
भेड़िए पग-पग
ताक लगाए ।
102
दया व नारी
जीवन के जुए में
दोनों ही हारी ।
104
शिशु -सी धूप
उतर रही घाटी में
मोहक रूप ।
105
बजा माँदल
घाटियों मे उतरे
मेघ चंचल ।
106
चढ़ी उचक
ऊँची मुँडेर पर
साँझ की धूप ।
107
हो गई साँझ
धूप -वधू लजाई
ओट हो गई ।
108
ईर्ष्या की आग
जला देती जिसको
होता वो राख ।
109
दो घूँट प्यार
किसी का है जीवन
दे दें जो आप ।
11 0
तुम्हारा कल
भला मैं क्यों पूछता
आज हो मेरे ।
111
छू लूँगा माथा
मिटेंगे सब ताप
मेरे हैं आप ।
112
आँसू झरेंगे
व्याकुल मन को ये
दुखी करेंगे ।
113
कब क्या देना
ईश्वर इसे जाने
हम न मानें ।
114
दो पल मिले
मधुर प्यार के जो
स्वर्ग से बड़े ।
115
आई जब थी
जीवन -सांध्य -बेला
तुम थे मिले ।
116
मुझे तो भाया
सादगी में नहाया
रूप तुम्हारा ।
117
चाँद निचोड़ा
और दे दिया वह
रूप तुमको ।
118
उनसे गिला
जिनसे धोखा कभी
तुमको मिला ।