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"हम अपनी सेना बनायें / कर्मानंद आर्य" के अवतरणों में अंतर

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गाय को तुमने माँ कहा
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रात दिन मार खायें
पत्थर को देवता
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उससे अच्छा है हम अपनी सेना बनाएं
नदियों में ले जाकर उड़ेल दी सारी आस्था
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पर्वतों की ऊँची चोटी को
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फेल हो गई व्यवस्था
तुमने आराध्य की तरह पूजा
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हद तक बढ़ गई दुर्दशा
बहते हुए पानी में तुम्हें देवत्व नजर आया
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आंत की रोटी छीनी
गर्मियों में सूख जाने वाली दूब को
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जात बताई कमीनी
तुमने पूज्य बनाया
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आओ कंधे से कंधा जोड़ लें
तुमने कौवे का ग्रास निकाला
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बारूदों की ओर मुख मोड़ लें
चीटियों के रास्ते में आटा डाला
+
 
सूरज को जातवेदाः कहा
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युवजन! तुम्हारी जवानियाँ प्रतिदान मांगती हैं
दसों दिशाओं से जोड़ा हाथ, हहा 
+
बलिदान मांगती हैं, कुलदान मांगती हैं
बरगद, पीपल और बड़
+
श्रमशील हंसिये उठो, तुम्हारा समय आ गया
तुमने चुना अपनी समिधाओं के लिए
+
कुदालियाँ उठो, तुम्हारा समय आ गया
तुलसी का चौरा तुमने ही बनाया
+
 
वट सावित्री महिलाओं के लिए
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देश के गद्दारों ने मुँह उठाया है
तुमने जीवितों की क्या भूतों की भी पूजा की 
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घास की रोटी खाने वालों ने हमको चिढ़ाया है
पत्थर तुम्हारे लिए अहिल्या हुई
+
 
तुमने जौ और अन्नकूट तिल को
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मिट्टी के शेरों पर मूत दो
बना दिया हवन
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मुगलों से ताकत लो, सूत दो
तुमने पानी को जल कहा
+
 
जल को कहा आचमन
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रोज-रोज मार खाने से अच्छा है एक रोज मर जाना
तुम्हारी हर ऋचा कहलाई ‘साम ऋचा’
+
टिम-टिम जलने से अच्छा है भभक कर जल जाना
प्रकृति पूजकों में तुम्हारा नाम सबसे ऊपर हुआ
+
 
पर क्या हुआ ?
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आओ, सैनिक छावनी में डेरा लगायें
तुमने अपने से दिखने वाले मनुष्यों के लिए
+
अन्यायी अत्याचारी के गढ़ में बारूदों की तरह बिछ जाएँ
चुना इतना क्रूर पथ ?
+
 
तुमने उन्हें पानी जैसी मूलभूत चीज से वंचित कर दिया
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केन बमों में आग है
क्यों नहीं पसीजा तुम्हारा ह्रदय
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सुतली बमों में आग है
तुमने उनके लिए षड्यंत्र ही किया आजीवन
+
जो आग है तुम्हारे भीतर उसको जलाएं
उनका भाग खाते रहे
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झुलसाते रहे उनका जीवन
+
आओ, हम अपनी ताकत बन जाएँ
तमाम जिंदगियाँ गुजार कर  
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तुमने अपनी गंदगी नहीं साफ़ की
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पशु ही बने रहे
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चलती रही तुम्हारे बाप की  
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तुमने पशुता की सारी हदें पार कर दी
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अबकी बार तुमने उन्हें
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मनुष्य का दर्जा देने से मना कर दिया
+
कितना दर्द दिया 
+
तुम देवता की खोल में ‘देवता’ तो बने नहीं
+
दानवों से भी नीचे गिर गए
+
पाताल की किसी घृणित कन्दरा में
+
फिर गए, फिर गए
+
पाखण्डी !!!!!!!!
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14:06, 20 मई 2019 के समय का अवतरण

रात दिन मार खायें
उससे अच्छा है हम अपनी सेना बनाएं

फेल हो गई व्यवस्था
हद तक बढ़ गई दुर्दशा
आंत की रोटी छीनी
जात बताई कमीनी
आओ कंधे से कंधा जोड़ लें
बारूदों की ओर मुख मोड़ लें

युवजन! तुम्हारी जवानियाँ प्रतिदान मांगती हैं
बलिदान मांगती हैं, कुलदान मांगती हैं
श्रमशील हंसिये उठो, तुम्हारा समय आ गया
कुदालियाँ उठो, तुम्हारा समय आ गया

देश के गद्दारों ने मुँह उठाया है
घास की रोटी खाने वालों ने हमको चिढ़ाया है

मिट्टी के शेरों पर मूत दो
मुगलों से ताकत लो, सूत दो

रोज-रोज मार खाने से अच्छा है एक रोज मर जाना
टिम-टिम जलने से अच्छा है भभक कर जल जाना

आओ, सैनिक छावनी में डेरा लगायें
अन्यायी अत्याचारी के गढ़ में बारूदों की तरह बिछ जाएँ

केन बमों में आग है
सुतली बमों में आग है
जो आग है तुम्हारे भीतर उसको जलाएं

आओ, हम अपनी ताकत बन जाएँ