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"दर्पण की धूल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | क्रोध है शत्रु | ||
+ | चूर करो। | ||
+ | है आग ईर्ष्या | ||
+ | दूर करो। | ||
+ | तब आँगन | ||
+ | मुस्काएगा | ||
+ | ये मन आरती | ||
+ | गाएगा। | ||
+ | ईर्ष्या का है | ||
+ | पाप बड़ा | ||
+ | क्रोध भस्मासुर | ||
+ | ताप बड़ा। | ||
+ | इनको दूर | ||
+ | भगा दोगे | ||
+ | जीवन को | ||
+ | महका दोगे। | ||
+ | दुनिया की गर | ||
+ | मानोगे | ||
+ | खुद को कभी | ||
+ | न जानोगे। | ||
+ | हर अपना बन | ||
+ | छल करता | ||
+ | कभी न पीड़ा | ||
+ | हल करता। | ||
+ | दर्द सदा जो | ||
+ | तुम दोगे | ||
+ | मिला ,उसे भी | ||
+ | खो दोगे। | ||
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00:18, 27 जून 2019 के समय का अवतरण
धूल झाड़ दो
दर्पण की
पीड़ा दूर करो
मन की।
क्रोध है शत्रु
चूर करो।
है आग ईर्ष्या
दूर करो।
तब आँगन
मुस्काएगा
ये मन आरती
गाएगा।
ईर्ष्या का है
पाप बड़ा
क्रोध भस्मासुर
ताप बड़ा।
इनको दूर
भगा दोगे
जीवन को
महका दोगे।
दुनिया की गर
मानोगे
खुद को कभी
न जानोगे।
हर अपना बन
छल करता
कभी न पीड़ा
हल करता।
दर्द सदा जो
तुम दोगे
मिला ,उसे भी
खो दोगे।
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