"उत्तराखण्ड में एक सफर प्रकृति के साथ / साधना जोशी" के अवतरणों में अंतर
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हरियाली का आवरण ओढ़कर, | हरियाली का आवरण ओढ़कर, | ||
− | धरती देती है | + | धरती देती है सन्देश, |
− | सुख | + | सुख शान्ति का । |
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प्रकृति को दुल्हन सा सजाना, | प्रकृति को दुल्हन सा सजाना, | ||
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बर्फ से ढकी पहाडियाँ । | बर्फ से ढकी पहाडियाँ । | ||
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बैठी है प्रकृति वसन्त के, | बैठी है प्रकृति वसन्त के, | ||
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विभाजन करते है उसके, | विभाजन करते है उसके, | ||
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हिमालय सफेद आवरण को, | हिमालय सफेद आवरण को, | ||
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दिखती है कभी छिप जाती है । | दिखती है कभी छिप जाती है । | ||
चीड़ के हरे-भरे पेड़ों की, | चीड़ के हरे-भरे पेड़ों की, | ||
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वसन्त को बहलाने के लिये । | वसन्त को बहलाने के लिये । | ||
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यह प्यारा सा सफर, | यह प्यारा सा सफर, | ||
− | हर दिन गढ़ | + | हर दिन गढ़ देश की धरती पर, |
− | बांझ | + | बांझ बुरांश के पेडों के, |
आंचल को चीरता हुआ । | आंचल को चीरता हुआ । | ||
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प्रातः तथा संध्या की लालिमां । | प्रातः तथा संध्या की लालिमां । | ||
उगते सुख और ढलते दुःख, | उगते सुख और ढलते दुःख, | ||
− | की | + | की सन्देश देती है । |
प्रातःकाल नवीन, | प्रातःकाल नवीन, | ||
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हमारा सफर । | हमारा सफर । | ||
− | गढ | + | गढ देश की धरा पर, |
हर पल नई उमंगों से भरा । | हर पल नई उमंगों से भरा । | ||
हर उम्र के पड़ाव को भुला कर, | हर उम्र के पड़ाव को भुला कर, |
21:48, 20 अप्रैल 2023 के समय का अवतरण
प्यारा सा रूप प्रकृति का,
जिसमें श्रृँगार है ।
हरे भरे जो गेहूॅं के खेतों का,
पीली सरसों का,
वसन्त ऋतु के साथ ।
हरे आंचल पर पीला गोटा,
और आंचल फैलाये बैठी है ।
प्रकृति,
बसन्त के आगमन में ।
प्योंली के फूलों को आंचल,
में सजाकर ।
हरियाली का आवरण ओढ़कर,
धरती देती है सन्देश,
सुख शान्ति का ।
बुरांश के लाल फूलों का खिलना,
और
प्रकृति को दुल्हन सा सजाना,
उसको निहारती श्वेत,
बर्फ से ढकी पहाडियाँ ।
दुल्हन का रूप लिये,
हरा आंचल फैलाये ।
बैठी है प्रकृति वसन्त के,
आगमन पर,
अपने प्रियतम को लुभाने के लिये।
नदियॉं गाढ़ गदेर,े
प्रकृतिक के भावों को,
छलकाते हुये ।
विभाजन करते है उसके,
शरीर के अंगों का का ।
हिमालय सफेद आवरण को,
ओढकर,
छुपाता है प्रकृति को अपनी,
गोद में ।
प्रकृति आंख मिचोली खेलती है,
दिखती है कभी छिप जाती है ।
चीड़ के हरे-भरे पेड़ों की,
आगोश में ।
वसन्त को बहलाने के लिये ।
प्रकृति के साथ यह,
हर पल का सफर ।
दुःख बीत जाने तथा,
सुख के आगमन से,
हृदय में उल्लास भरता है।
यह प्यारा सा सफर,
हर दिन गढ़ देश की धरती पर,
बांझ बुरांश के पेडों के,
आंचल को चीरता हुआ ।
सूरज की पहली किरणों के साथ,
प्रातः तथा संध्या की लालिमां ।
उगते सुख और ढलते दुःख,
की सन्देश देती है ।
प्रातःकाल नवीन,
चेतना और उत्साह से ।
भरा जीवन का सफर,
प्रकृति की गोद में खेलता,
उछलता कूदता
हमारा सफर ।
गढ देश की धरा पर,
हर पल नई उमंगों से भरा ।
हर उम्र के पड़ाव को भुला कर,
हम चलते है साथ साथ ।
प्रकृति की सुन्दरता को,
निहारते हुये एक नवीन,
चेतना के साथ ।
उत्तराखण्ड में सफर प्रकृति के साथ,
मखमली आंचल को सहलाते हुये ।