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हल्ला / सुखचैन / अनिल जनविजय
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13:47, 14 अगस्त 2019
तुम्हारी दादी के कान नहीं रहे
जिनमें
रचमिच
रच-मिच
गए थे तुम्हारे बोल
उड़ जाते हैं जाड़े के गुनगुने दिन और पतँग
और तुम उन्हें चुपचाप छोड़ आते हो
अनिल जनविजय
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