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हाये रे | I मोर उलुव्हा सपना कइसे अइलागेसुख वैरी पलहरा होगे, दुख हर वउछागे |I
रोज रोज आंखी म पलोये
होवत बिहिनियां सुरूज़ अगोरे
आस किरन म बइठे सगरो दिन हर पहागे|I
हाय रे| मोर उलुव्हा सपना कइसे अइलागे
बस चार आंगुर के पेट भरे बर
मन हर बइला बनगे, तन नागर कस फंदागे |Iहाय रे| मोर उलुव्हा सपना कइसे अइलागे |I
</poem>
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