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+ | धरा-सी व्यथा | ||
+ | तुम्हारे मन दबी | ||
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+ | होते ही भोर | ||
+ | धरा ने बिखेरे हैं | ||
+ | ओस के मोती । | ||
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+ | उड़ी थी धूल | ||
+ | किरकिराई आँखें | ||
+ | धूसर नभ । | ||
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+ | क्षितिज हँसा | ||
+ | सिन्दूरी कपोल थे | ||
+ | नभ के हुए । | ||
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+ | खेलते खो-खो | ||
+ | मेघ-शिशु अम्बर | ||
+ | शोर मचाएँ । | ||
+ | 12 | ||
+ | धमा-चौकड़ी | ||
+ | करती अम्बर में | ||
+ | मेघमालिका। | ||
+ | 13 | ||
+ | धान रोपती | ||
+ | छप-छप बदरी | ||
+ | अम्बर क्यारी । | ||
+ | 14 | ||
+ | नभ -अधर | ||
+ | हुए जो मुकुलित | ||
+ | ऊषा पधारी । | ||
+ | 15 | ||
+ | नभ उदास | ||
+ | हो गई दोपहर | ||
+ | कोई न पास । | ||
+ | </poem> |
07:36, 8 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
1
कम्पित धरा
उदर-पीर बढ़ी
आया भूकम्प ।
2
झूमी फसलें
धरा ने पहने हैं
प्यारे गहने ।
3
धरा का बल
नदियाँ कल-कल
गाते झरने।
4
धरा की गोद
थका-हारा जीवन
पा जाए चैन।
5
धरा सबकी
नफ़रत की बाड़
लगाना नहीं।
6
धरा-आँचल
फैली है हरीतिमा
सुघड़ तन ।
7
धरा-सी व्यथा
तुम्हारे मन दबी
सहती गई।
8
होते ही भोर
धरा ने बिखेरे हैं
ओस के मोती ।
9
उड़ी थी धूल
किरकिराई आँखें
धूसर नभ ।
10
क्षितिज हँसा
सिन्दूरी कपोल थे
नभ के हुए ।
11
खेलते खो-खो
मेघ-शिशु अम्बर
शोर मचाएँ ।
12
धमा-चौकड़ी
करती अम्बर में
मेघमालिका।
13
धान रोपती
छप-छप बदरी
अम्बर क्यारी ।
14
नभ -अधर
हुए जो मुकुलित
ऊषा पधारी ।
15
नभ उदास
हो गई दोपहर
कोई न पास ।