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"पाखी न पाती / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | ये दो बोल तुम्हारे | ||
+ | देते जीवन । | ||
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+ | रिसता दर्द | ||
+ | पोर-पोर से नित | ||
+ | कोई न बाँटे। | ||
+ | 48 | ||
+ | ज्ञान अपार | ||
+ | कराए सागर पार | ||
+ | भाव -निर्मल । | ||
+ | 49 | ||
+ | स्नेह-कसौटी | ||
+ | निश्छल व्यवहार | ||
+ | वही सद्गुरु । | ||
+ | 50 | ||
+ | गुरु अनेक | ||
+ | परम प्रिय शिष्य | ||
+ | दुर्लभ एक । | ||
+ | 51 | ||
+ | तमस् हरता | ||
+ | उजियारा करता | ||
+ | लोभ से दूर । | ||
+ | 52 | ||
+ | वासना-पंक | ||
+ | जो डूबे हैं आकण्ठ, | ||
+ | गुरु कलंक । | ||
+ | 53 | ||
+ | भेद जो करे | ||
+ | ऐसे गुरु कपटी | ||
+ | नरक भरें । | ||
+ | 54 | ||
+ | शिष्य को छले | ||
+ | ऐसे गुरु से अच्छे | ||
+ | सौ पापी भले । | ||
+ | 55 | ||
+ | मेरा संकल्प- | ||
+ | ज्ञान -स्नेह बाँटना | ||
+ | बने जीवन । | ||
+ | 56 | ||
+ | तन चन्दन | ||
+ | मन हरसिंगार | ||
+ | झरता प्यार । | ||
+ | 57 | ||
+ | स्वर्णिम रूप | ||
+ | जैसे सर्दी की धूप | ||
+ | लगे अनूप । | ||
+ | 58 | ||
+ | दिल जो मिले | ||
+ | स्वर्गिक अनुभूति | ||
+ | टूटे बंधन। | ||
+ | 59 | ||
+ | पाखी न पाती | ||
+ | मिलेंगे कैसे अब | ||
+ | याद रुलाती । | ||
+ | 60 | ||
+ | तुम दर्पण | ||
+ | खुद को निहारता | ||
+ | उदास मन । | ||
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07:43, 8 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
46
जीवन-मरु
ये दो बोल तुम्हारे
देते जीवन ।
47
रिसता दर्द
पोर-पोर से नित
कोई न बाँटे।
48
ज्ञान अपार
कराए सागर पार
भाव -निर्मल ।
49
स्नेह-कसौटी
निश्छल व्यवहार
वही सद्गुरु ।
50
गुरु अनेक
परम प्रिय शिष्य
दुर्लभ एक ।
51
तमस् हरता
उजियारा करता
लोभ से दूर ।
52
वासना-पंक
जो डूबे हैं आकण्ठ,
गुरु कलंक ।
53
भेद जो करे
ऐसे गुरु कपटी
नरक भरें ।
54
शिष्य को छले
ऐसे गुरु से अच्छे
सौ पापी भले ।
55
मेरा संकल्प-
ज्ञान -स्नेह बाँटना
बने जीवन ।
56
तन चन्दन
मन हरसिंगार
झरता प्यार ।
57
स्वर्णिम रूप
जैसे सर्दी की धूप
लगे अनूप ।
58
दिल जो मिले
स्वर्गिक अनुभूति
टूटे बंधन।
59
पाखी न पाती
मिलेंगे कैसे अब
याद रुलाती ।
60
तुम दर्पण
खुद को निहारता
उदास मन ।