"वर्तिका नन्दा / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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− | डॉ. वर्तिका नन्दा भारत की | + | डॉ. वर्तिका नन्दा भारत की स्थापित जेल सुधारक औस मीडिया शिक्षक हैं। वे अपराध और जेल पर नए प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। उनकी स्थापित तिनका तिनका फाउंडेशन ने देश की जेलों पर इकलौते पॉडकास्ट-तिनका तिनका जेल रेडियो- की शुरुआत की। जिला जेल, आगरा, जिला जेल, देहरादून और हरियाणा की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। उन्होंने भारत की जेलों में तिनका जेल पत्रकारिता की नींव रखी है। एक महिला होने के बावजूद वर्तिका ने खौफ देती जेलों में यह स्थापित किया है कि मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल भी हो सकता है। |
− | '''शैक्षिक योग्यता:''' एम ए ( मास कम्यूनिकेशन), पीएच.डी (प्रिंट मीडिया में बलात्कार की रिपोर्टिंग) | + | '''शैक्षिक योग्यता:''' एम. ए. (मास कम्यूनिकेशन), पीएच.डी (प्रिंट मीडिया में बलात्कार की रिपोर्टिंग) |
'''जन्म तिथि:''' 17 अप्रैल | '''जन्म तिथि:''' 17 अप्रैल | ||
− | '''व्यवसाय:''' मीडिया शिक्षण, लेडी | + | '''व्यवसाय:''' मीडिया शिक्षण, प्रमुख, पत्रकारिता विभाग, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली |
'''कार्यक्षेत्र:''' वे जालंधर दूरदर्शन में एशिया की सबसे छोटी एंकर बनीं और आतंकवाद के दौर में अपनी उम्र के बच्चों के लिए प्रेरणा भी। 21 साल के सफर में वे जी टीवी, एनडीटीवी, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली और लोकसभा टीवी से जुड़ीं। वे लोकसभा टीवी की पहली एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर बनीं और उसके नींव से निर्माण तक की बुनियादी टीम का प्रमुख हिस्सा रहीं। भारतीय जनसंचार संस्थान में तीन साल तक बतौर एसोसिएट प्रोफेसर जुड़ी रहीं। वे भारतीय टेलीविजन की उन गिनी-चुनी महिला पत्रकारों में से हैं जो अपराध पत्रकारिता से जुड़ीं और एनडीटीवी में इस बीट की प्रमुख भी बनीं। अपने कैरियर की पराकाष्ठा पर एक भली तनख्वाह की नौकरी को छोड़ उन्होंने मीडिया शिक्षण को चुना और मीडिया के छात्रों के लिए उपयोगी बनने की कोशिश की। फिलहाल वे दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष हैं । | '''कार्यक्षेत्र:''' वे जालंधर दूरदर्शन में एशिया की सबसे छोटी एंकर बनीं और आतंकवाद के दौर में अपनी उम्र के बच्चों के लिए प्रेरणा भी। 21 साल के सफर में वे जी टीवी, एनडीटीवी, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली और लोकसभा टीवी से जुड़ीं। वे लोकसभा टीवी की पहली एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर बनीं और उसके नींव से निर्माण तक की बुनियादी टीम का प्रमुख हिस्सा रहीं। भारतीय जनसंचार संस्थान में तीन साल तक बतौर एसोसिएट प्रोफेसर जुड़ी रहीं। वे भारतीय टेलीविजन की उन गिनी-चुनी महिला पत्रकारों में से हैं जो अपराध पत्रकारिता से जुड़ीं और एनडीटीवी में इस बीट की प्रमुख भी बनीं। अपने कैरियर की पराकाष्ठा पर एक भली तनख्वाह की नौकरी को छोड़ उन्होंने मीडिया शिक्षण को चुना और मीडिया के छात्रों के लिए उपयोगी बनने की कोशिश की। फिलहाल वे दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष हैं । | ||
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'''विशेष सम्मान:''' भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित। यह भारत की महिलाओं को दिया जाने वाला देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। भारत सरकार से 2007 में भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान प्राप्त। जेलों पर अपने काम की वजह से दो बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल। देश की तीन जेलों के लिए परिचय गान लिखे जिन्हें जेल के ही बंदियों ने गाया। | '''विशेष सम्मान:''' भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित। यह भारत की महिलाओं को दिया जाने वाला देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। भारत सरकार से 2007 में भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान प्राप्त। जेलों पर अपने काम की वजह से दो बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल। देश की तीन जेलों के लिए परिचय गान लिखे जिन्हें जेल के ही बंदियों ने गाया। | ||
− | '''जेलों पर किताबें:''' तिनका तिनका तिहाड़ ( 2013), | + | '''कुछ अन्य सम्मान:''' 2018 में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान द्वारा '''माधवराव सप्रे सम्मान, 2015''' में उनकी लघु फिल्म '''नानकपुरा कुछ नहीं भूलता''' को '''लाडली मीडिया सम्मान, 2015''' में मानवीय विषयों पर श्रेष्ठ लेखन और पत्रकारिता के लिए '''श्रीमती जावित्री देवी जोशी सम्मान''', उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से 2013 में '''यूथ आइकॉन अवॉर्ड, 2012''' में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित किताब- '''थी. हूं.. रहूंगी...''' के लिए '''ऋतुराज परंपरा सम्मान, 2012''' में '''डॉ. राधाकृष्ण मीडिया अवार्ड''', 2007 में उनकी किताब टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता को '''भारतेंदु हरिश्चंद्र अवॉर्ड''' और '''सुधा पत्रकारिता सम्मान'''। अल्फा पब्लिकेशन्स ने वर्तिका नन्दा का नाम दुनिया के 108 नामी पत्रकारों के एन्साइक्लोपीडिया में भी शामिल किया और 13 अन्य पत्रकारों के साथ उनकी तस्वीर को कवर पर छापा। 2017 में आकाशवाणी के एफएम रेडियो ने उनके काम पर 7 कड़ियों में '''गा मेरे मन गा''' नामक लोकप्रिय कार्यक्रम प्रस्तुत किया। फेमिना ने '''रानियां सब जानती हैं''' (वाणी प्रकाशन) को 2015 की सबसे चर्चित किताबों में शामिल किया। |
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+ | '''जेलों पर किताबें:''' जेलों पर लिखी उनकी तीन किताबें- तिनका तिनका तिहाड़ (2013 और 2023), तिनका तिनका डासना (2016 और 2020) और तिनका तिनका मध्य प्रदेश (2018)- जेल-जीवन पर प्रामाणिक दस्तावेज मानी जाती हैं। | ||
'''मीडिया पर किताबें:''' मीडिया और बाजार ( 2018), टेलीविजन और क्राइम रिपोर्टिंग ( 2010) , ख़बर यहां भी ( 2014), टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता ( 2005) | '''मीडिया पर किताबें:''' मीडिया और बाजार ( 2018), टेलीविजन और क्राइम रिपोर्टिंग ( 2010) , ख़बर यहां भी ( 2014), टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता ( 2005) | ||
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'''काव्य संकलन:''' रानियां सब जानती हैं (2015 ), थी. हूं..रहूंगी... ( 2012), मरजानी ( 2011) | '''काव्य संकलन:''' रानियां सब जानती हैं (2015 ), थी. हूं..रहूंगी... ( 2012), मरजानी ( 2011) | ||
− | '''जेल सुधार पर विशेष:''' देश की 1382 जेलों की अमानवीय स्थिति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई का हिस्सा हैं। 2018 में जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति की आकलन प्रक्रिया में शामिल किया। | + | '''जेल सुधार पर विशेष:''' देश की 1382 जेलों की अमानवीय स्थिति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई का हिस्सा हैं। 2018 में जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति की आकलन प्रक्रिया में शामिल किया। 2020 में ICSSR के लिए भारतीय जेलों में संचार की जरूरतों पर किए गए उनके शोध को उत्कृष्ट माना गया है। |
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+ | 2015 में उन्होने जेल के बंदियों के लिए देश के पहले ख़ास सम्मानों- तिनका तिनका इंडिया अवार्ड्स और तिनका तिनका बंदिनी अवार्ड्स की शुरूआत की। यह पुरस्कार हर साल राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस और महिला दिवस पर पर जेलों में सृजन कर रहे बंदियों को दिए जाते हैं। | ||
− | + | '''अपराध पर विशेष:''' वे दिल्ली पुलिस की आवाज हैं। दिल्ली पुलिस के पॉडकास्ट '''किस्सा खाकी का''' की आधिकारिक किस्सागो। | |
− | पता (कार्यालय): लेडी श्री राम कॉलेज, लाजपत नगर IV, नई दिल्ली<br> | + | '''पता (कार्यालय):''' लेडी श्री राम कॉलेज, लाजपत नगर IV, नई दिल्ली<br> |
− | + | ईमेल: tinkatinkaorg@gmail.com<br> | |
− | + | वेबसाइट: www.tinkatinka.org / www.vartikananda.com<br> | |
− | ब्लॉग : www.vartikananda.blogspot.com<br> | + | ब्लॉग: www.vartikananda.blogspot.com<br> |
19:38, 1 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
डॉ. वर्तिका नन्दा भारत की स्थापित जेल सुधारक औस मीडिया शिक्षक हैं। वे अपराध और जेल पर नए प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। उनकी स्थापित तिनका तिनका फाउंडेशन ने देश की जेलों पर इकलौते पॉडकास्ट-तिनका तिनका जेल रेडियो- की शुरुआत की। जिला जेल, आगरा, जिला जेल, देहरादून और हरियाणा की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। उन्होंने भारत की जेलों में तिनका जेल पत्रकारिता की नींव रखी है। एक महिला होने के बावजूद वर्तिका ने खौफ देती जेलों में यह स्थापित किया है कि मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल भी हो सकता है।
शैक्षिक योग्यता: एम. ए. (मास कम्यूनिकेशन), पीएच.डी (प्रिंट मीडिया में बलात्कार की रिपोर्टिंग)
जन्म तिथि: 17 अप्रैल
व्यवसाय: मीडिया शिक्षण, प्रमुख, पत्रकारिता विभाग, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
कार्यक्षेत्र: वे जालंधर दूरदर्शन में एशिया की सबसे छोटी एंकर बनीं और आतंकवाद के दौर में अपनी उम्र के बच्चों के लिए प्रेरणा भी। 21 साल के सफर में वे जी टीवी, एनडीटीवी, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली और लोकसभा टीवी से जुड़ीं। वे लोकसभा टीवी की पहली एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर बनीं और उसके नींव से निर्माण तक की बुनियादी टीम का प्रमुख हिस्सा रहीं। भारतीय जनसंचार संस्थान में तीन साल तक बतौर एसोसिएट प्रोफेसर जुड़ी रहीं। वे भारतीय टेलीविजन की उन गिनी-चुनी महिला पत्रकारों में से हैं जो अपराध पत्रकारिता से जुड़ीं और एनडीटीवी में इस बीट की प्रमुख भी बनीं। अपने कैरियर की पराकाष्ठा पर एक भली तनख्वाह की नौकरी को छोड़ उन्होंने मीडिया शिक्षण को चुना और मीडिया के छात्रों के लिए उपयोगी बनने की कोशिश की। फिलहाल वे दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष हैं ।
विशेष सम्मान: भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित। यह भारत की महिलाओं को दिया जाने वाला देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। भारत सरकार से 2007 में भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान प्राप्त। जेलों पर अपने काम की वजह से दो बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल। देश की तीन जेलों के लिए परिचय गान लिखे जिन्हें जेल के ही बंदियों ने गाया।
कुछ अन्य सम्मान: 2018 में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान द्वारा माधवराव सप्रे सम्मान, 2015 में उनकी लघु फिल्म नानकपुरा कुछ नहीं भूलता को लाडली मीडिया सम्मान, 2015 में मानवीय विषयों पर श्रेष्ठ लेखन और पत्रकारिता के लिए श्रीमती जावित्री देवी जोशी सम्मान, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से 2013 में यूथ आइकॉन अवॉर्ड, 2012 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित किताब- थी. हूं.. रहूंगी... के लिए ऋतुराज परंपरा सम्मान, 2012 में डॉ. राधाकृष्ण मीडिया अवार्ड, 2007 में उनकी किताब टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता को भारतेंदु हरिश्चंद्र अवॉर्ड और सुधा पत्रकारिता सम्मान। अल्फा पब्लिकेशन्स ने वर्तिका नन्दा का नाम दुनिया के 108 नामी पत्रकारों के एन्साइक्लोपीडिया में भी शामिल किया और 13 अन्य पत्रकारों के साथ उनकी तस्वीर को कवर पर छापा। 2017 में आकाशवाणी के एफएम रेडियो ने उनके काम पर 7 कड़ियों में गा मेरे मन गा नामक लोकप्रिय कार्यक्रम प्रस्तुत किया। फेमिना ने रानियां सब जानती हैं (वाणी प्रकाशन) को 2015 की सबसे चर्चित किताबों में शामिल किया।
जेलों पर किताबें: जेलों पर लिखी उनकी तीन किताबें- तिनका तिनका तिहाड़ (2013 और 2023), तिनका तिनका डासना (2016 और 2020) और तिनका तिनका मध्य प्रदेश (2018)- जेल-जीवन पर प्रामाणिक दस्तावेज मानी जाती हैं।
मीडिया पर किताबें: मीडिया और बाजार ( 2018), टेलीविजन और क्राइम रिपोर्टिंग ( 2010) , ख़बर यहां भी ( 2014), टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता ( 2005)
काव्य संकलन: रानियां सब जानती हैं (2015 ), थी. हूं..रहूंगी... ( 2012), मरजानी ( 2011)
जेल सुधार पर विशेष: देश की 1382 जेलों की अमानवीय स्थिति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई का हिस्सा हैं। 2018 में जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति की आकलन प्रक्रिया में शामिल किया। 2020 में ICSSR के लिए भारतीय जेलों में संचार की जरूरतों पर किए गए उनके शोध को उत्कृष्ट माना गया है।
2015 में उन्होने जेल के बंदियों के लिए देश के पहले ख़ास सम्मानों- तिनका तिनका इंडिया अवार्ड्स और तिनका तिनका बंदिनी अवार्ड्स की शुरूआत की। यह पुरस्कार हर साल राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस और महिला दिवस पर पर जेलों में सृजन कर रहे बंदियों को दिए जाते हैं।
अपराध पर विशेष: वे दिल्ली पुलिस की आवाज हैं। दिल्ली पुलिस के पॉडकास्ट किस्सा खाकी का की आधिकारिक किस्सागो।
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