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"उम्मीद / ऋतु पल्लवी" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारा प्यार डायरी के पन्ने पर
 
तुम्हारा प्यार डायरी के पन्ने पर
 
 
स्याही की तरह छलक जाता है  
 
स्याही की तरह छलक जाता है  
 
 
और मैं उसे समेट नहीं पाती  
 
और मैं उसे समेट नहीं पाती  
 
 
मेरे मन की बंजर धरती उसे सोख नहीं पाती.  
 
मेरे मन की बंजर धरती उसे सोख नहीं पाती.  
 
  
 
रात के कोयले से घिस -घिस कर  
 
रात के कोयले से घिस -घिस कर  
 
 
मांजती हूँ मैं रोज़ दिया  
 
मांजती हूँ मैं रोज़ दिया  
 
 
पर तुम्हारे रोशन चेहरे की सुबह  
 
पर तुम्हारे रोशन चेहरे की सुबह  
 
 
उसमे कभी देख नहीं पाती.  
 
उसमे कभी देख नहीं पाती.  
 
  
 
सीधी राह पर चलते फ़कीर  
 
सीधी राह पर चलते फ़कीर  
 
 
से तुम्हारे भोले सपने
 
से तुम्हारे भोले सपने
 
 
चारों ओर से घिरी पगडंडियों पर से  
 
चारों ओर से घिरी पगडंडियों पर से  
 
 
रोज़ सुनती हूँ उन्हें  
 
रोज़ सुनती हूँ उन्हें  
 
 
पर हाथ बढाकर रोक नहीं पाती.  
 
पर हाथ बढाकर रोक नहीं पाती.  
 
  
 
मेरा कोरा मन ,रीता दिया  
 
मेरा कोरा मन ,रीता दिया  
 
 
उलझे सपने ,रोज़ कोसते हैं मुझे  
 
उलझे सपने ,रोज़ कोसते हैं मुझे  
 
 
फिर भी जिए जाती हूँ  
 
फिर भी जिए जाती हूँ  
 
 
क्यूंकि जीवन से भरी ये तुम्हारी ही हैं उम्मीदें  
 
क्यूंकि जीवन से भरी ये तुम्हारी ही हैं उम्मीदें  
 
 
जिनको मायूसी रोक नहीं पाती और एकाकीपन मार नहीं पाता….
 
जिनको मायूसी रोक नहीं पाती और एकाकीपन मार नहीं पाता….
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19:32, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारा प्यार डायरी के पन्ने पर
स्याही की तरह छलक जाता है
और मैं उसे समेट नहीं पाती
मेरे मन की बंजर धरती उसे सोख नहीं पाती.

रात के कोयले से घिस -घिस कर
मांजती हूँ मैं रोज़ दिया
पर तुम्हारे रोशन चेहरे की सुबह
उसमे कभी देख नहीं पाती.

सीधी राह पर चलते फ़कीर
से तुम्हारे भोले सपने
चारों ओर से घिरी पगडंडियों पर से
रोज़ सुनती हूँ उन्हें
पर हाथ बढाकर रोक नहीं पाती.

मेरा कोरा मन ,रीता दिया
उलझे सपने ,रोज़ कोसते हैं मुझे
फिर भी जिए जाती हूँ
क्यूंकि जीवन से भरी ये तुम्हारी ही हैं उम्मीदें
जिनको मायूसी रोक नहीं पाती और एकाकीपन मार नहीं पाता….