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"आखिर लोग क्या कहेंगे / राजकिशोर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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घर में, ऽाने को दाने नहीं
+
घर में, खाने को दाने नहीं
पिफर भी
+
फिर भी
 
अतिथियों के आ जाने पर
 
अतिथियों के आ जाने पर
 
कर्ज लेकर
 
कर्ज लेकर
 
कराना पड़ता है
 
कराना पड़ता है
 
उन्हें लजीज जलपान
 
उन्हें लजीज जलपान
आऽिर क्या कहेंगे
+
आखिर क्या कहेंगे
 
दूर से आये हुए मेहमान
 
दूर से आये हुए मेहमान
 
पहनने के लिए घर में
 
पहनने के लिए घर में
 
एक भी नहीं है चिथड़ा
 
एक भी नहीं है चिथड़ा
पिफर भी
+
फिर भी
 
पड़ोसियों से लेकर, देना पड़ता है
 
पड़ोसियों से लेकर, देना पड़ता है
उन्हें अंग वस्त्रा का सामान
+
उन्हें अंग वस्त्र का सामान
आऽिर कैसे कहलाऐंगे
+
आखिर कैसे कहलाऐंगे
बहुत बड़ा ध्नवान
+
बहुत बड़ा धनवान
 
रहने के लिए, न है टूटी मड़ैया
 
रहने के लिए, न है टूटी मड़ैया
पिफर भी
+
फिर भी
 
भाड़े पर इंतजाम करते हैं
 
भाड़े पर इंतजाम करते हैं
 
उनके लिए मकान आलीशान
 
उनके लिए मकान आलीशान
  
 
+
आखिर क्या कहेंगे
आऽिर क्या कहेंगे
+
 
नव आगन्तुक मेहमान
 
नव आगन्तुक मेहमान
 
जेब में नहीं रहती
 
जेब में नहीं रहती
एक भी पफूटी कौड़ी
+
एक भी फूटी कौड़ी
पिफर भी
+
फिर भी
 
शहर के लोगों के बीच
 
शहर के लोगों के बीच
 
चंदा देने में हैं हम बदनाम
 
चंदा देने में हैं हम बदनाम
आऽिर क्या कहेंगे
+
आखिर क्या कहेंगे
 
आशा लेकर आये हुए इंसान
 
आशा लेकर आये हुए इंसान
पीते नहीं बीड़ी, ऽाते नहीं ऽैनी
+
पीते नहीं बीड़ी, खाते नहीं खैनी
पिफर भी
+
फिर भी
 
दारु पीने के लिए
 
दारु पीने के लिए
 
साथियों को देते रहते पैगाम
 
साथियों को देते रहते पैगाम
आऽिर कैसे मिलेगा
+
आखिर कैसे मिलेगा
 
लोगों से सम्मान
 
लोगों से सम्मान
मिलती नहीं पफुर्सत
+
मिलती नहीं फुर्सत
 
सांस भी लेने की
 
सांस भी लेने की
पिफर भी
+
फिर भी
 
आगन्तुकों के आने पर
 
आगन्तुकों के आने पर
 
बातों में हो जाती सुबह से शाम
 
बातों में हो जाती सुबह से शाम
 
नहीं तो क्या कहेंगे
 
नहीं तो क्या कहेंगे
गप्प लड़ाते हुए श्री मान
+
गप्प लड़ाते हुए श्रीमान
काम की अध्किता में
+
काम की अधिकता में
 
दिल नहीं करता
 
दिल नहीं करता
औरों का मुँह भी देऽूँ
+
औरों का मुँह भी देखूँ
पिफर भी
+
फिर भी
  
 
लोगों के आ जाने पर
 
लोगों के आ जाने पर
 
लाते हैं चेहरे पर
 
लाते हैं चेहरे पर
 
व्यापारिक मुस्कान
 
व्यापारिक मुस्कान
आऽिर क्या कहेंगे
+
आखिर क्या कहेंगे
 
सामने बैठे इन्सान
 
सामने बैठे इन्सान
 
मित्रों! दुनिया कुछ कहे
 
मित्रों! दुनिया कुछ कहे
पिफर भी
+
फिर भी
 
करो अपने मन मुताबिक काम
 
करो अपने मन मुताबिक काम
 
नहीं तो
 
नहीं तो

01:19, 21 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

घर में, खाने को दाने नहीं
फिर भी
अतिथियों के आ जाने पर
कर्ज लेकर
कराना पड़ता है
उन्हें लजीज जलपान
आखिर क्या कहेंगे
दूर से आये हुए मेहमान
पहनने के लिए घर में
एक भी नहीं है चिथड़ा
फिर भी
पड़ोसियों से लेकर, देना पड़ता है
उन्हें अंग वस्त्र का सामान
आखिर कैसे कहलाऐंगे
बहुत बड़ा धनवान
रहने के लिए, न है टूटी मड़ैया
फिर भी
भाड़े पर इंतजाम करते हैं
उनके लिए मकान आलीशान

आखिर क्या कहेंगे
नव आगन्तुक मेहमान
जेब में नहीं रहती
एक भी फूटी कौड़ी
फिर भी
शहर के लोगों के बीच
चंदा देने में हैं हम बदनाम
आखिर क्या कहेंगे
आशा लेकर आये हुए इंसान
पीते नहीं बीड़ी, खाते नहीं खैनी
फिर भी
दारु पीने के लिए
साथियों को देते रहते पैगाम
आखिर कैसे मिलेगा
लोगों से सम्मान
मिलती नहीं फुर्सत
सांस भी लेने की
फिर भी
आगन्तुकों के आने पर
बातों में हो जाती सुबह से शाम
नहीं तो क्या कहेंगे
गप्प लड़ाते हुए श्रीमान
काम की अधिकता में
दिल नहीं करता
औरों का मुँह भी देखूँ
फिर भी

लोगों के आ जाने पर
लाते हैं चेहरे पर
व्यापारिक मुस्कान
आखिर क्या कहेंगे
सामने बैठे इन्सान
मित्रों! दुनिया कुछ कहे
फिर भी
करो अपने मन मुताबिक काम
नहीं तो
लुट जाओगे, हो जाओगे कंगाल
बिक जाएगा घर, सारा सामान
अंत में क्या कहेंगे
ये सारे इन्सान।