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"जीवन / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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10:28, 26 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
एक जीवन मिला था
उसे जिया नहीं
वह अमृत-घट था
उसे पिया नहीं
भरमते रहे
प्यासे और निरीह
उस झरने की खोज में
जो अंदर था
बंद और ठहरा हुआ
उसे अपने को दिया नहीं
मांगते रहे प्यार और आश्वासन
कृपण हो गए हैं लोग
दुहराते रहे बार-बार
खुद को कुछ दिया नहीं
खोजते रहे अलंकरण
सजाने के
उन सपनों को--जो दिखे नहीं।
बीत गई उमर
और एक अदद जीवन
यों ही बिना जिए
अंदर से भरा
और ऊपर से रिक्त ।