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23:48, 30 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
अभिशाप भले ही दे दो, पर
वरदान नहीं देना मुझको!
जब सविता जैसा चमक पडूँ,
जब मधुघट बनकर छलक पडूँ,
तब लघुता मुझमें भर देना,
अभिमान नहीं देना मुझको!
मूक ग़रीबी का साया हो,
जब सुख माया-ही-माया हो,
संघर्षों में मिटने देना,
पर, दान नहीं देना मुझको!
रचनाकाल: 1945