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| + | साँसों की पूँजी | ||
| + | बन्द न कर सकी | ||
| + | कोई तिजोरी। | ||
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| + | बजती रही | ||
| + | समय सरगम | ||
| + | अबाध क्रम। | ||
| + | 69 | ||
| + | शब्द दो-चार | ||
| + | प्रकट कर देते | ||
| + | भाव-विचार । | ||
| + | 70 | ||
| + | भीड़ है बड़ी | ||
| + | मानवता की कमी | ||
| + | फिर भी पड़ी । | ||
| + | 71 | ||
| + | सत्य अटल | ||
| + | मिलता कर्मफल | ||
| + | आज या कल। | ||
| + | 72 | ||
| + | पाषाण जैसा | ||
| + | मानव मन हुआ | ||
| + | आँसू न दया। | ||
| + | 73 | ||
| + | श्रमिक भाग्य | ||
| + | श्रम की पूँजी हाथ | ||
| + | बारहों मास। | ||
| + | 74 | ||
| + | उजड़े बाग | ||
| + | प्रदूषित नदियाँ | ||
| + | मानव जाग। | ||
| + | 75 | ||
| + | करे उजाड़ | ||
| + | अहंकार की बाढ़ | ||
| + | रिश्तों का गाँव । | ||
| + | 76 | ||
| + | वर्षा की झड़ी | ||
| + | मजदूर के घर | ||
| + | ठण्डी सिगड़ी। | ||
| + | 77 | ||
| + | '''एक ही छत''' | ||
कमरों की तरह | कमरों की तरह | ||
बँटे हैं मन | बँटे हैं मन | ||
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00:57, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
67
साँसों की पूँजी
बन्द न कर सकी
कोई तिजोरी।
68
बजती रही
समय सरगम
अबाध क्रम।
69
शब्द दो-चार
प्रकट कर देते
भाव-विचार ।
70
भीड़ है बड़ी
मानवता की कमी
फिर भी पड़ी ।
71
सत्य अटल
मिलता कर्मफल
आज या कल।
72
पाषाण जैसा
मानव मन हुआ
आँसू न दया।
73
श्रमिक भाग्य
श्रम की पूँजी हाथ
बारहों मास।
74
उजड़े बाग
प्रदूषित नदियाँ
मानव जाग।
75
करे उजाड़
अहंकार की बाढ़
रिश्तों का गाँव ।
76
वर्षा की झड़ी
मजदूर के घर
ठण्डी सिगड़ी।
77
एक ही छत
कमरों की तरह
बँटे हैं मन