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"एक ही छत / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर

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एक ही छत
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साँसों की पूँजी
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बन्द न कर सकी
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कोई तिजोरी।
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बजती रही
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समय सरगम
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शब्द दो-चार
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प्रकट कर देते
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भाव-विचार ।
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भीड़ है बड़ी
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मानवता की कमी
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फिर भी पड़ी ।
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सत्य अटल
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मिलता कर्मफल
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आज या कल।
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पाषाण जैसा
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मानव मन हुआ
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आँसू न दया।
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श्रमिक भाग्य
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श्रम की पूँजी हाथ
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बारहों मास।
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उजड़े बाग
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प्रदूषित नदियाँ
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मानव जाग।
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करे उजाड़
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अहंकार की बाढ़
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रिश्तों  का गाँव ।
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वर्षा की झड़ी
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मजदूर के घर
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ठण्डी सिगड़ी।
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'''एक ही छत'''
 
कमरों की तरह
 
कमरों की तरह
 
बँटे हैं मन
 
बँटे हैं मन
 
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00:57, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

67
साँसों की पूँजी
बन्द न कर सकी
कोई तिजोरी।
68
बजती रही
समय सरगम
अबाध क्रम।
69
शब्द दो-चार
प्रकट कर देते
भाव-विचार ।
70
भीड़ है बड़ी
मानवता की कमी
फिर भी पड़ी ।
71
सत्य अटल
मिलता कर्मफल
आज या कल।
72
पाषाण जैसा
मानव मन हुआ
आँसू न दया।
73
श्रमिक भाग्य
श्रम की पूँजी हाथ
बारहों मास।
74
उजड़े बाग
प्रदूषित नदियाँ
मानव जाग।
75
करे उजाड़
अहंकार की बाढ़
रिश्तों का गाँव ।
76
वर्षा की झड़ी
मजदूर के घर
ठण्डी सिगड़ी।
77
एक ही छत
कमरों की तरह
बँटे हैं मन