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"सावन बनकर आऊँगा / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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करुणा कलित हृदय में उठती
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कभी  तुम्हारे  जीवन  में सूखापन  आये 
विरह व्यथा में करुण हिलोरें।
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मुझसे कहना मैं सावन बनकर आऊँगा।
  
पतली-दुबली बुझती लौ को
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अभी बहुत रस-गंध बहुत यौवन है तुममें,
थोड़ा ज्यों ईंधन मिल जाता,  
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अभी तुम्हें क्या कमी प्यार की होने वाली।
जैसे पलभर घने-घनों से
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अभी माँग लो उडुप-करधनी ला सब देंगें,
सूर्य निकलकर सम्मुख आता।
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अभी नहीं है विरह आँख दो धोने वाली।
वैसे, सोच कनिष्ठ सुखद पल
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खिल जाती अधरों की छोरें।
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करुणा कलित हृदय में उठती
+
विरह व्यथा में करुण हिलोरें।
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अलसायी - सी मध्य-निशा में
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मगर प्रीत के मधुकर जब ठुकरा जाएँगें-
ज्यों मादक नूपुर का वादन,  
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तब तुम कहना मैं साजन बनकर आऊँगा।
जैसे महक रहा हो वन में
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विषधर से लिपटा तरु चन्दन।
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अभी तुम्हारी चाह बदल सकती है पल-पल,
वैसे प्रिया-स्मृति है करती
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अभी तुम्हारी चालें उर घायल करती हैं।
शीतल, सजल नयन की कोरें।
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अभी तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करने,
करुणा कलित हृदय में उठती
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जाने कितनी ही इच्छाएँ दम भरती हैं।
विरह व्यथा में  करुण हिलोरें।
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मगर शिला-सा छोड़ तुम्हें जब जग जाएगा-  
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तुमपर मिटने मैं चंदन बनकर आऊँगा।
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अभी तुम्हें शृंगार, चमकते वस्त्र लुभाते,
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अभी कहाँ है मोल किसी ढाई अक्षर का।
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जहाँ शोर की चाह प्राण! हावी हो मन पर,
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वहाँ कहाँ है मोल हृदय से उठते स्वर का।
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मगर शोर से मौन प्रिये! जब भी आएगा-
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प्यार भरा तब मैं गुंजन बनकर आऊँगा।
 
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16:28, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

कभी तुम्हारे जीवन में सूखापन आये
मुझसे कहना मैं सावन बनकर आऊँगा।

अभी बहुत रस-गंध बहुत यौवन है तुममें,
अभी तुम्हें क्या कमी प्यार की होने वाली।
अभी माँग लो उडुप-करधनी ला सब देंगें,
अभी नहीं है विरह आँख दो धोने वाली।

मगर प्रीत के मधुकर जब ठुकरा जाएँगें-
तब तुम कहना मैं साजन बनकर आऊँगा।

अभी तुम्हारी चाह बदल सकती है पल-पल,
अभी तुम्हारी चालें उर घायल करती हैं।
अभी तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करने,
जाने कितनी ही इच्छाएँ दम भरती हैं।

मगर शिला-सा छोड़ तुम्हें जब जग जाएगा-
तुमपर मिटने मैं चंदन बनकर आऊँगा।

अभी तुम्हें शृंगार, चमकते वस्त्र लुभाते,
अभी कहाँ है मोल किसी ढाई अक्षर का।
जहाँ शोर की चाह प्राण! हावी हो मन पर,
वहाँ कहाँ है मोल हृदय से उठते स्वर का।

मगर शोर से मौन प्रिये! जब भी आएगा-
प्यार भरा तब मैं गुंजन बनकर आऊँगा।