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"देखना और सुनना / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर

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देखने के नाम पर
 
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मेरे पास सिर्फ़ वह अंधेरा है
 
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जो बढ़ता ही चला जा रहा है
 
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लेकिन सुनने के नाम पर
 
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ढेर सारी किलकारियाँ हैं
 
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घुटनों के बल
 
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खिसक-खिसक कर आते हुए बच्चे की।
 
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मैं
 
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जो कुछ भी देख पा रहा हूँ
 
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वह आज है।
 
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लेकिन जो सुन रहा हूँ
 
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वह आने वाला कल है।
 
वह आने वाला कल है।
 
  
 
(रचनाकाल : 05.01.1978)
 
(रचनाकाल : 05.01.1978)

15:19, 6 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण


देखने के नाम पर
मेरे पास सिर्फ़ वह अंधेरा है
जो बढ़ता ही चला जा रहा है

लेकिन सुनने के नाम पर
ढेर सारी किलकारियाँ हैं

घुटनों के बल
खिसक-खिसक कर आते हुए बच्चे की।

मैं
जो कुछ भी देख पा रहा हूँ
वह आज है।
लेकिन जो सुन रहा हूँ
वह आने वाला कल है।

(रचनाकाल : 05.01.1978)