भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीने का दुख / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (सशुल्क योगदानकर्ता ५ (वार्ता) द्वारा...) |
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:43, 9 मार्च 2021 के समय का अवतरण
जीने का दुख
न जीने के सुख से बेहतर है,
इसलिए कि
दुख में तपा आदमी
आदमी आदमी के लिए तड़पता है;
सुख से सजा आदमी
आदमी आदमी के लिए
आदमी नहीं रहता है ।
21 अक्तूबर 1980