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"प्रकृतिको काखमाथि / गीता त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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11:20, 30 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
प्रकृतिको काखमाथि बालापनको झल्को
याद सधैँ आइरहने उमेर भने ढल्क्यो
सङ्गिनीको साथसाथै वनपाखा घुमी
बित्यो बालापन पनि यौवनले चुमी
काफल टिप्दै थाकी वनमा पानी पिउँथ्यौँ मूलको
याद सधैँ आइरहने उमेर भने ढल्क्यो
ऐँसेलुको घारीघारी चहारेर सारा
पहाडको माथिमाथि पुग्थ्यौँ टाढाटाढा
डराएर दौडी आउँदा पसिनाको खल्को
याद सधैँ आइरहने उमेर भने ढल्क्यो
गाउँदै गीत साथी सङ्गी अल्लारेको पन
साँझ बिहान थर्काउँथ्यौँ आफ्नै रनवन
कसरी हो आगोसरि यो जवानी सल्क्यो
याद सधैँ आइरहने उमेर भने ढल्क्यो