भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चंद आदिम रूप / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी }} बाढ़ में फंसने पर वैसे ही बिदकत...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी | |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह=पृथ्वी के लिए तो रूको / विजयशंकर चतुर्वेदी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
बाढ़ में फंसने पर | बाढ़ में फंसने पर | ||
− | |||
वैसे ही बिदकते हैं पशु | वैसे ही बिदकते हैं पशु | ||
− | + | जैसे ईसा से करोड़ साल पहले । | |
− | जैसे ईसा से करोड़ साल पहले | + | |
− | + | ||
ठीक वैसे ही चौकन्ना होता है हिरन | ठीक वैसे ही चौकन्ना होता है हिरन | ||
− | |||
शेर की आहट पाकर | शेर की आहट पाकर | ||
− | + | जैसे होता था हिरन बनने के दिनों में । | |
− | जैसे होता था हिरन बनने के दिनों में | + | |
− | + | ||
गज और ग्राह का युद्ध | गज और ग्राह का युद्ध | ||
+ | होता है उसी आदिम रूप में । | ||
− | + | जैसे आज भी काट खाता है दाँतों से | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
नखों से फाड़ देता है मनुष्य शत्रु को | नखों से फाड़ देता है मनुष्य शत्रु को | ||
− | + | निहत्था होने पर । | |
− | निहत्था होने पर | + | </poem> |
17:10, 19 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
बाढ़ में फंसने पर
वैसे ही बिदकते हैं पशु
जैसे ईसा से करोड़ साल पहले ।
ठीक वैसे ही चौकन्ना होता है हिरन
शेर की आहट पाकर
जैसे होता था हिरन बनने के दिनों में ।
गज और ग्राह का युद्ध
होता है उसी आदिम रूप में ।
जैसे आज भी काट खाता है दाँतों से
नखों से फाड़ देता है मनुष्य शत्रु को
निहत्था होने पर ।