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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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भीगा आकाश,
 
बूँदें,
 
पेड़ नम,
 
रात के अँधेरे में
 
नभ अदृष्ट ।
 
गीली धरती भी चुप,
 
मौन दिशा ।
 
दीवारें तम की
 
सब ओर घिरीं ।
 
 
किन्तु वह सितारा :
 
वह नन्ही-सी ज्योतिमान धारा:
 
वह तारा…
 
वह चमके ही जाता है,
 
बूँदों, अँधियारों के,
 
मौन के प्रहारों के
 
विरुद्ध ।
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