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|रचनाकार= सुधा गुप्ता  
|नाम=एक क़ाफ़िला : नन्ही नौकाओं का
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|रचनाकार=[[ सुधा गुप्ता]]
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|प्रकाशक=अमित अग्रवाल,169, देवी नगर मेरठ
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|वर्ष= मई 1983
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'''1-सिसकी'''
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बहुत देर रो-रोकर
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हलकान हो-होकर
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सो जाए कोई बच्चा काँधे लगकर
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तो
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नींद में जैसे बार-बार
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उसे सिसकी आती है
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ऐसे
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मुझे तेरी याद आती है
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बहुत देर रो-रोकर
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हलकान हो-होकर ।
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'''2-प्यास'''
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एक दिन भी
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अपनी मर्ज़ी का न जिया
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एक मैं ही रही प्यासी
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और सबने
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भर-भर प्याला
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छककर पिया।
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होगा किसी मुट्ठी में चाँद
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किसी में सूरज,
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मैंने तो
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साँस-साँस
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बस
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ज़िन्दगी का कर्ज़
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चुकता किया।
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एक दिन भी
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अपनी मर्ज़ी का न जिया।
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'''3-लड़ाई'''
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शीशे पर
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आती है गौरैया
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बार-बार
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मारती है चोंच
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एक बार-दस बार-सौ बार
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हज़ार बार ।
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ख़ुद पर करती प्रहार-
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ख़ुद से होती घायल गौरैया
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अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी
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खुद से लड़ते , चोट खाते बीतती है।
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'''4-अँधेरी सुरंग'''
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कितने दिन हुए
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तुमसे
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बिछुड़े
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कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?
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सोचती हूँ
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पर कुछ याद नहीं आता ।
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एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही हूँ
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जाने कब से !
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गुज़रूँगी
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जाने कब तक !!
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कहीं
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रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !
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10:55, 7 जून 2020 के समय का अवतरण

1-सिसकी

बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर
सो जाए कोई बच्चा काँधे लगकर
तो
नींद में जैसे बार-बार
उसे सिसकी आती है
ऐसे
मुझे तेरी याद आती है
बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर ।
-0-
2-प्यास

 एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया
एक मैं ही रही प्यासी
और सबने
भर-भर प्याला
छककर पिया।

होगा किसी मुट्ठी में चाँद
किसी में सूरज,
मैंने तो
साँस-साँस
बस
ज़िन्दगी का कर्ज़
चुकता किया।
एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया।
-0-
3-लड़ाई

शीशे पर
आती है गौरैया
बार-बार
मारती है चोंच
एक बार-दस बार-सौ बार
हज़ार बार ।
ख़ुद पर करती प्रहार-
ख़ुद से होती घायल गौरैया

अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी
खुद से लड़ते , चोट खाते बीतती है।
-0-

4-अँधेरी सुरंग

कितने दिन हुए
तुमसे
बिछुड़े
कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?
सोचती हूँ
पर कुछ याद नहीं आता ।

एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही हूँ
जाने कब से !
गुज़रूँगी
जाने कब तक !!

कहीं
रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !
-0-