"चार मुक्तक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} चार मुक्तक <br> जोड़...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | ||
− | }} | + | }} |
− | + | <Poem> | |
− | + | '''1. | |
− | आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में । | + | जोड़ने के काम में ज़िन्दगी हमने बिताई । |
− | सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई | + | जो थी शक्ति तुम्हारी तोड़ने के काम आई || |
− | + | आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में । | |
− | अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं । | + | सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई|| |
− | है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं | + | |
− | पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का । | + | '''2. |
− | कौन अपना यहाँ पराया पहचानते हैं | + | |
− | + | अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं । | |
− | हाँ उनका कर्ज़ हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है। | + | है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं || |
− | जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है | + | पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का । |
− | जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर । | + | कौन अपना यहाँ पराया पहचानते हैं || |
− | उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।। | + | |
− | + | '''3. | |
− | धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता । | + | |
− | धर्म नहीं जुनून में कभी सिर किसी का काटता | + | हाँ उनका कर्ज़ हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है। |
− | जग में दु:ख का या दर्द का नाम कुछ होता नहीं | + | जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है || |
− | धर्म वह जो राह की हर खाई को है पाटता | + | जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर । |
+ | उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।। | ||
+ | |||
+ | '''4. | ||
+ | |||
+ | धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता । | ||
+ | धर्म नहीं जुनून में कभी सिर किसी का काटता || | ||
+ | जग में दु:ख का या दर्द का नाम कुछ होता नहीं | ||
+ | धर्म वह जो राह की हर खाई को है पाटता || | ||
+ | </poem> |
20:08, 6 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
1.
जोड़ने के काम में ज़िन्दगी हमने बिताई ।
जो थी शक्ति तुम्हारी तोड़ने के काम आई ||
आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में ।
सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई||
2.
अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं ।
है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं ||
पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का ।
कौन अपना यहाँ पराया पहचानते हैं ||
3.
हाँ उनका कर्ज़ हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है।
जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है ||
जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर ।
उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।।
4.
धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता ।
धर्म नहीं जुनून में कभी सिर किसी का काटता ||
जग में दु:ख का या दर्द का नाम कुछ होता नहीं
धर्म वह जो राह की हर खाई को है पाटता ||