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"चार मुक्तक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई ॥<br>
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आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में ।
अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं ।<br>
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सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई||
है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं ॥<br>
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पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का ।<br>
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कौन अपना यहाँ  पराया पहचानते हैं ॥<br>
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अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं ।
हाँ उनका कर्ज़  हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है।<br>
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है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं ||
जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है ॥<br>
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पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का ।
जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर ।<br>
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कौन अपना यहाँ  पराया पहचानते हैं ||
उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।।<br>
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धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता ।<br>
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धर्म नहीं जुनून में  कभी सिर किसी का काटता ॥<br>
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हाँ उनका कर्ज़  हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है।
जग में दु:ख का  या दर्द का  नाम कुछ होता नहीं<br>
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जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है ||
धर्म वह जो राह की हर खाई को  है पाटता <br>
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जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर ।
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उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।।
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धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता ।
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धर्म नहीं जुनून में  कभी सिर किसी का काटता ||
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जग में दु:ख का  या दर्द का  नाम कुछ होता नहीं
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धर्म वह जो राह की हर खाई को  है पाटता ||
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20:08, 6 जनवरी 2009 के समय का अवतरण


1.

जोड़ने के काम में ज़िन्दगी हमने बिताई ।
जो थी शक्ति तुम्हारी तोड़ने के काम आई ||
आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में ।
सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई||

2.

अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं ।
है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं ||
पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का ।
कौन अपना यहाँ पराया पहचानते हैं ||

3.

हाँ उनका कर्ज़ हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है।
जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है ||
जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर ।
उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।।

4.

धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता ।
धर्म नहीं जुनून में कभी सिर किसी का काटता ||
जग में दु:ख का या दर्द का नाम कुछ होता नहीं
धर्म वह जो राह की हर खाई को है पाटता ||