भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बोलकर तुमसे / यश मालवीय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKVID|v=bTIjpg1juFs}}
 
<poem>
 
<poem>
 
फूल सा हल्का हुआ मन
 
फूल सा हल्का हुआ मन

20:50, 1 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

फूल सा हल्का हुआ मन
बोलकर तुमसे
आँख भर बरसा घिरा घन
बोलकर तुमसे

स्वप्न पीले पड़ गये थे
तुम गये जब से
बहुत आजिज़ आ गये थे
रोज़ के ढब से
मौन फिर बुनता हरापन
बोलकर तुमसे

तुम नहीं थे, ख़ुशी थी
जैसे कहीं खोई
तुम मिले तो ज्यों मिला
खोया सिरा कोई
पा गये जैसे गड़ा धन
बोलकर तुमसे