भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बर्सातमा / सुदीप पाख्रिन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) छो (Sirjanbindu ने बर्सातमा / सुदीप पाख्रीन पृष्ठ बर्सातमा / सुदीप पाख्रिन पर स्थानांतरित किया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=सुदीप | + | |रचनाकार=सुदीप पाख्रिन |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= आदिम मौनता / सुदीप पाख्रिन |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | बर्सातमा.... | + | बर्सातमा..... |
− | बेसोमति नदीहरु | + | बेसोमति नदीहरु |
− | आफ्नो धार छाडी किनारबाट | + | आफ्नो धार छाडी किनारबाट उक्लन्छन् |
− | र, | + | र, कुद्छन् छानाहरुमाथिबाट |
− | गल्लीहरुमा, चौकहरुमा अफ्ठ्यारै नमानी | + | गल्लीहरुमा, चौकहरुमा अफ्ठ्यारै नमानी |
− | बर्सातमा.... | + | बर्सातमा....... |
− | नग्न खोलाहरु | + | नग्न खोलाहरु |
− | बगरहरु उक्ली सतहबाट हुइकन्छन् | + | बगरहरु उक्ली सतहबाट हुइकन्छन् |
− | र, | + | र, उर्लन्छन् मानिसहरुमाथि |
− | बस्तीहरुमा, गाउँहरुमा लाजै नमानी | + | बस्तीहरुमा, गाउँहरुमा लाजै नमानी |
− | बर्सातमा.... | + | बर्सातमा..... |
− | धमिलो, आँखा नभएको | + | धमिलो, आँखा नभएको |
− | + | मृत्युको छायाँ सल्बलाउँछ — पानीमा | |
− | बर्सातमा.... | + | बर्सातमा....... |
− | + | मृत्यु | |
− | स्वयं गड्गडाउँदै बग्दछ | + | स्वयं गड्गडाउँदै बग्दछ — पानीमा |
− | बर्सातमा नै त.... | + | बर्सातमा नै त..... |
− | + | कुवा भित्रका भ्यागुताहरु | |
− | + | घमण्डले अझ उन्मत्त भई टर्टराउने गर्दछन् | |
− | + | आफू मात्रै 'ठूलो' हुनुको भ्रममा | |
− | 'हुनु' हुने | + | 'हुनु' हुने गर्दछ — बर्सातमा ! |
− | 'नहुनु' पनि हुने | + | 'नहुनु' पनि हुने गर्दछ — बर्सातमा !! |
− | त्यसैले | + | त्यसैले |
बर्सातमा.... | बर्सातमा.... | ||
− | बोल्न खोज्नेहरु नबोल्नु | + | बोल्न खोज्नेहरु नबोल्नु |
− | बर्सातका झर.... झर.... माझ | + | बर्सातका झर....झर...... माझ |
− | 'बोल्नु' को औचित्य कहाँ हुन्छ र ? | + | 'बोल्नु' को औचित्य कहाँ हुन्छ र ??? |
</poem> | </poem> |
14:15, 28 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
बर्सातमा.....
बेसोमति नदीहरु
आफ्नो धार छाडी किनारबाट उक्लन्छन्
र, कुद्छन् छानाहरुमाथिबाट
गल्लीहरुमा, चौकहरुमा अफ्ठ्यारै नमानी
बर्सातमा.......
नग्न खोलाहरु
बगरहरु उक्ली सतहबाट हुइकन्छन्
र, उर्लन्छन् मानिसहरुमाथि
बस्तीहरुमा, गाउँहरुमा लाजै नमानी
बर्सातमा.....
धमिलो, आँखा नभएको
मृत्युको छायाँ सल्बलाउँछ — पानीमा
बर्सातमा.......
मृत्यु
स्वयं गड्गडाउँदै बग्दछ — पानीमा
बर्सातमा नै त.....
कुवा भित्रका भ्यागुताहरु
घमण्डले अझ उन्मत्त भई टर्टराउने गर्दछन्
आफू मात्रै 'ठूलो' हुनुको भ्रममा
'हुनु' हुने गर्दछ — बर्सातमा !
'नहुनु' पनि हुने गर्दछ — बर्सातमा !!
त्यसैले
बर्सातमा....
बोल्न खोज्नेहरु नबोल्नु
बर्सातका झर....झर...... माझ
'बोल्नु' को औचित्य कहाँ हुन्छ र ???