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"मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था / अंबर खरबंदा" के अवतरणों में अंतर
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− | मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था | + | मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था |
पेड़ को तो बस पीले पत्तों से छुटकारा पाना था | पेड़ को तो बस पीले पत्तों से छुटकारा पाना था | ||
− | + | तेरी सूरत पढ़ कर मुझको सोच लिया करते थे लोग | |
− | + | वो भी था इक वक़्त कभी ऐसा भी एक ज़माना था | |
− | बादल,बरखा, जाम, सुराही, उनकी यादें, तन्हाई | + | रेशा-रेशा होकर अब बिखरी है मेरे आँगन में |
− | तुझको तो ऐ मेरी तौबा ! शाम ढले मर जाना था | + | रिश्तों की वो चादर जिसका वो ताना, मैं बाना था |
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+ | बादल, बरखा, जाम, सुराही, उनकी यादें, तन्हाई | ||
+ | तुझको तो ऐ मेरी तौबा! शाम ढले मर जाना था | ||
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+ | उन गलियों में भी अब तो बेगानेपन के डेरे हैं | ||
+ | जिन गलियों में ‘अंबर’ जी अक्सर आना जाना था | ||
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12:31, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था
पेड़ को तो बस पीले पत्तों से छुटकारा पाना था
तेरी सूरत पढ़ कर मुझको सोच लिया करते थे लोग
वो भी था इक वक़्त कभी ऐसा भी एक ज़माना था
रेशा-रेशा होकर अब बिखरी है मेरे आँगन में
रिश्तों की वो चादर जिसका वो ताना, मैं बाना था
बादल, बरखा, जाम, सुराही, उनकी यादें, तन्हाई
तुझको तो ऐ मेरी तौबा! शाम ढले मर जाना था
उन गलियों में भी अब तो बेगानेपन के डेरे हैं
जिन गलियों में ‘अंबर’ जी अक्सर आना जाना था