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"मैं जो बन्‍दी हूं / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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अन्‍यथा हम मर जाएंगे।"
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00:41, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मैं, जो बंदी हूं
गाता हूं आनन्दित-मुक्तिगीत:
मेरी बेडि़यां फुसफुसाती रहती हैं-
"तुम समग्र हो,
तुम हो स्‍वतन्‍त्र"
तुम्‍हारे बन्‍धन हैं
केवल तुम्‍हारे बन्‍धुओं के
मुक्ति-प्रतीक !"

और...
तुम जो आबद्ध/स्‍वेच्‍छाचारी हो
चीखते रहो अनवरत आशंका में-
"हमें उसको बनाए रखना है
बन्‍दी,
अन्‍यथा हम मर जाएंगे।"